मौत को मात :जहरीले गेहूँवन ने काटा, प्रधानपाठक की सूझबूझ और युवक के साहस ने बचाई जान; 40 वर्षीय रामप्रसाद को मिला नया जीवन

चंद्रिका कुशवाहा सूरजपुर । छत्तीसगढ़ के सूरजपुर जिले के प्रतापपुर क्षेत्र में मानवता, हिम्मत और त्वरित सूझबूझ की एक कहानी सामने आई है। ग्राम पंचायत बरौल डूमरखोली में मंगलवार दोपहर को भारत के सबसे खतरनाक सांपों में से एक, गेहूँवन फनिक (कोबरा) के काटने के बावजूद 40 वर्षीय रामप्रसाद ने न केवल मौत को चकमा दिया, बल्कि इस घटना ने डूमरखोली प्राथमिक शाला के प्रधानपाठक संजय कुमार चतुर्वेदी को ‘देवदूत’ के रूप में स्थापित कर दिया।
डूमरखोली निवासी रामप्रसाद (40 वर्ष) मंगलवार दोपहर करीब 2:30 बजे गांव के पास गाय-बैल चरा रहे थे। अचानक एक अत्यंत विषैले गेहूँवन फनिक सांप ने उनके पैर के अंगूठे में काट लिया। सांप की पकड़ इतनी ज़बरदस्त थी कि रामप्रसाद दर्द से तड़प उठे और खून बहने लगा।
गंभीर स्थिति में भी रामप्रसाद ने हार नहीं मानी। उन्होंने तुरंत डंडे की मदद से जहरीले नाग को मार गिराया। इसके बाद, वह सांप को साथ लेकर पहचान सुनिश्चित करने के लिए सीधे दौड़ते हुए डूमरखोली प्राथमिक शाला पहुँचे और वहाँ मौजूद प्रधानपाठक संजय कुमार चतुर्वेदी से मदद की गुहार लगाई, “सर, मेरी जान बचा लीजिए!”
शिक्षक बने जीवनदाता:
प्रधानपाठक संजय चतुर्वेदी ने एक पल भी नहीं गंवाया। स्थिति की गंभीरता को समझते हुए, उन्होंने तत्काल अपनी मोटरसाइकिल से रामप्रसाद को अस्पताल ले जाने का फैसला किया। रास्ते में विष के प्रभाव से रामप्रसाद बेहोश होने लगा, लेकिन शिक्षक ने हौसला बनाए रखा। उन्होंने तत्परता दिखाते हुए ग्रामीणों की सहायता ली और तुरंत घायल युवक को प्रतापपुर सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र पहुँचाया।
समय पर उपचार से टला खतरा:
डॉक्टरों ने पुष्टि की कि गेहूँवन फनिक अत्यंत विषैला होता है और यदि दो घंटे के भीतर सही इलाज न मिले तो मृत्यु निश्चित है। सौभाग्य से, प्रधानपाठक की तत्परता से रामप्रसाद को ‘गोल्डन आवर’ में चिकित्सा मिल गई। तत्काल एंटी-वेनम और उपचार शुरू किया गया, जिससे उनकी जान बच गई। वर्तमान में युवक की स्थिति में तेजी से सुधार हो रहा है और डॉक्टरों ने अब खतरा टलने की घोषणा कर दी है।
यह पूरी घटना अब डूमरखोली और आसपास के क्षेत्र में कौतूहल और चर्चा का विषय बनी हुई है। रामप्रसाद ने मरे हुए सांप की फोटो भी खिंचवाई, जिसकी चर्चा गांव में है।
यह घटना एक बार फिर दर्शाती है कि विपरीत परिस्थितियों में भी एक व्यक्ति का साहस, और एक ज़िम्मेदार नागरिक प्रधानपाठक संजय चतुर्वेदी की सूझबूझ व मानवता किस प्रकार जीवन और मृत्यु के बीच की दूरी को मिटा सकती है। प्रधानपाठक संजय चतुर्वेदी समाज के लिए एक वास्तविक प्रेरणास्रोत बन गए हैं।



