जनगणना 2027 अधिसूचना जारी: आजादी के बाद पहली बार होगी जातिगत जनगणना, जानें पूरी प्रक्रिया और सवालों के जवाब

नई दिल्ली: केंद्र सरकार ने भारत में आगामी जनगणना के लिए अधिसूचना जारी कर दी है, जिससे आजादी के बाद पहली बार देशव्यापी जातिगत जनगणना का मार्ग प्रशस्त हो गया है। मार्च 2027 को संदर्भ तिथि मानकर पूरे देश में यह प्रक्रिया शुरू होगी, जबकि पहाड़ी राज्यों में यह काम अक्टूबर 2026 तक पूरा कर लिया जाएगा। यह जनगणना पिछली सभी जनगणनाओं से कई मायनों में अलग और अधिक विस्तृत होगी।
अधिसूचना के बाद क्या होगी प्रक्रिया?
जनगणना अधिनियम 1948 के तहत, अधिसूचना जारी होने के बाद केंद्र सरकार तीन चरणों में जनगणना की प्रक्रिया को आगे बढ़ाएगी। इस बार 35 लाख से अधिक कर्मी डिजिटल रूप से काम करेंगे और 16 भाषाओं में मोबाइल ऐप का उपयोग किया जाएगा।
जनगणना में कौन से सवाल पूछे जाएंगे?
जनगणना केवल आबादी की गिनती नहीं है, बल्कि यह देश के सामाजिक-आर्थिक ढांचे को समझने का एक महत्वपूर्ण जरिया है। जनगणना करने वाले अधिकारी लोगों से कई तरह के सवाल पूछेंगे।
पहले चरण (घरों को सूचीबद्ध करने) में निम्न तरह के सवाल पूछे जा सकते हैं:
* घर किस तरह के और किस हाल में हैं?
* पीने के पानी की व्यवस्था कैसी है?
* शौचालय की उपलब्धता और प्रकार?
* रसोई और खाना पकाने के लिए उपयोग होने वाला ईंधन?
* घर में उपयोग किए जाने वाले वाहन?
* आवास में फोन, टेलीविजन, कंप्यूटर जैसी सुविधाएं हैं या नहीं?
* इंटरनेट और स्मार्टफोन की उपलब्धता?
* खाने की आदतें और मुख्य अनाज का उपभोग?
दूसरे चरण (आबादी की गणना) में लोगों से व्यक्तिगत जानकारी पूछी जाएगी, जिसमें शामिल हैं:
* नाम, लिंग और उम्र।
* धर्म और जाति (एससी/एसटी के साथ अब अन्य जातियों की जानकारी भी)।
* मातृभाषा।
* शैक्षणिक स्तर।
* नौकरी और आर्थिक स्थिति।
पिछली 2011 की जनगणना में ऐसे 35 सवाल शामिल थे, और इस बार भी सवालों का जत्था इसी तरह विस्तृत होने की उम्मीद है। 2011 की जनगणना का पूरा डेटा मार्च 2012 तक जारी कर दिया गया था, जबकि विस्तृत रिपोर्ट अप्रैल 2013 में प्रकाशित हुई थी।
इस बार की जनगणना कितनी अलग और अहम होगी?
1881 से लगातार हो रही जनगणना COVID-19 महामारी के कारण 2021 में टाल दी गई थी। 2027 की जनगणना कई कारणों से पिछली सभी जनगणनाओं से भिन्न होगी:
* जातिगत जनगणना: यह आजादी के बाद पहली बार होगा जब अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के साथ-साथ अन्य जातियों के भी विस्तृत आंकड़े जुटाए जाएंगे। 1931 के बाद से अन्य जातियों के जातिवार आंकड़े प्रकाशित नहीं किए गए थे।
* डिजिटल प्रक्रिया: इस बार जनगणना का काम बड़े पैमाने पर डिजिटल माध्यम से किया जाएगा, जिससे डेटा संग्रह और विश्लेषण में गति और सटीकता आने की उम्मीद है।
* नीति निर्धारण: जातिगत जनगणना से विभिन्न समुदायों की वास्तविक सामाजिक, शैक्षिक, राजनीतिक और आर्थिक स्थिति का पता चलेगा, जिससे उनके लिए बेहतर नीतियां और कार्यक्रम बनाने में मदद मिलेगी।
जातिगत जनगणना की आवश्यकता और इतिहास
भारत में जनगणना की शुरुआत 1881 में हुई थी, और 1931 तक हर जनगणना में जातिवार आंकड़े भी जारी किए गए थे। 1941 में आंकड़े जुटाए गए, लेकिन जारी नहीं किए गए। आजादी के बाद से, केवल अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के जाति आधारित आंकड़े ही प्रकाशित किए जाते रहे हैं।
जातिगत जनगणना की मांग क्यों?
वर्तमान में देश की कुल आबादी में अन्य पिछड़ी जातियों (OBC) की संख्या का ठीक-ठीक अनुमान लगाना मुश्किल है। 1990 में मंडल आयोग की सिफारिशें लागू करते समय 1931 की जनगणना को आधार माना गया था, जिसके अनुसार पिछड़ी जातियां कुल आबादी का 52% थीं।
जातिगत जनगणना के समर्थकों का तर्क है कि एससी और एसटी वर्ग के आरक्षण का आधार उनकी आबादी है, लेकिन ओबीसी आरक्षण 90 साल पुराने आंकड़ों पर आधारित है, जो अब प्रासंगिक नहीं हैं। एक नई जातिगत जनगणना से एक ठोस आधार मिलेगा, जिससे जनसंख्या के अनुपात में आरक्षण नीतियों को संशोधित किया जा सकेगा। इससे पिछड़े और अति-पिछड़े वर्गों की शैक्षणिक, सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक स्थिति का सटीक आकलन होगा, जिससे उनकी बेहतरी के लिए उचित नीति निर्धारण संभव हो पाएगा।
हालांकि, कुछ लोगों का मानना है कि इस तरह की जनगणना से समाज में जातीय विभाजन बढ़ सकता है और कटुता उत्पन्न हो सकती है।