बांग्लादेश के बाद एक और छात्र आंदोलन ने गिराई सरकार: नेपाल के प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली ने दिया इस्तीफा

नेपाल में बीते कई दिनों से चल रहे हिंसक छात्र आंदोलन का आखिरकार असर दिख गया है। भारी दबाव और सैन्य हस्तक्षेप के बाद प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया है। उनके इस्तीफे को राष्ट्रपति रामचन्द्र पौडेल ने तत्काल प्रभाव से मंजूर कर लिया है। इस घटना को ठीक उसी तरह से देखा जा रहा है जिस तरह हाल ही में पड़ोसी देश बांग्लादेश में छात्र आंदोलन ने सरकार को सत्ता से बेदखल कर दिया था।
सेना के बयान के बाद बढ़ी इस्तीफे की अटकलें
प्रधानमंत्री ओली पर इस्तीफे का दबाव तब और बढ़ गया था जब सेना ने एक सख्त बयान जारी किया था। सेना ने साफ कर दिया था कि “जब तक प्रधानमंत्री कुर्सी नहीं छोड़ेंगे, तब तक देश में हालात स्थिर नहीं होंगे।” सेना के इस बयान को ओली के लिए एक स्पष्ट संदेश माना गया। इस्तीफे के बाद, सेना ने सुरक्षा कारणों से प्रधानमंत्री ओली को अपने संरक्षण में ले लिया है। यह कदम देश में किसी भी तरह की और हिंसा को रोकने के लिए उठाया गया है।
आंदोलनकारी नेताओं की शांति की अपील
प्रधानमंत्री के इस्तीफे के बाद, आंदोलनकारी नेताओं ने एक महत्वपूर्ण अपील जारी की है। उन्होंने प्रदर्शनकारियों से कहा है कि वे सरकारी कागजों और संपत्तियों को नुकसान न पहुँचाएँ और किसी भी तरह के डेटाबेस से छेड़छाड़ न करें। यह अपील दर्शाती है कि आंदोलन का उद्देश्य सिर्फ सरकार बदलना था, न कि अराजकता फैलाना। यह भी साफ होता है कि यह आंदोलन किसी राजनीतिक दल से प्रेरित न होकर, एक संगठित और उद्देश्य-आधारित छात्र-युवा विद्रोह था।
बांग्लादेश और नेपाल में समान ‘Gen-Z’ विद्रोह
नेपाल में हुई यह घटना बांग्लादेश में हुए हालिया छात्र आंदोलन से काफी मेल खाती है। दोनों ही देशों में आंदोलनों की शुरुआत युवा वर्ग (Gen-Z) ने की थी। बांग्लादेश में यह सरकारी कोटा प्रणाली के खिलाफ शुरू हुआ था, जबकि नेपाल में यह सोशल मीडिया पर लगे प्रतिबंध के खिलाफ था। दोनों ही आंदोलन जल्द ही बेरोजगारी, भ्रष्टाचार और राजनीतिक परिवारवाद जैसे बड़े मुद्दों पर केंद्रित हो गए। दोनों देशों में युवाओं ने अपनी सरकारों के खिलाफ एक सामूहिक असंतोष व्यक्त किया, जिसकी परिणति सत्ता परिवर्तन में हुई। यह घटना पूरे दक्षिण एशिया के लिए एक नया संदेश है कि अब सरकारों को युवा वर्ग की आकांक्षाओं और गुस्से को नजरअंदाज करना भारी पड़ सकता है।





