मैनपाट

79 साल की आज़ादी के बाद भी सरकारी उपेक्षा का दंश: सरगुजा के सुपलगा में ‘मछली नदी’ पर पुल नदारद, ग्रामीण प्रतिवर्ष बरसात के बाद खुद बनाते हैं जानलेवा ‘जुगाड़ पुल’

महेश यादव मैनपाट।
देश को आज़ाद हुए 79 वर्ष बीत चुके हैं, लेकिन अंबिकापुर से महज़ 55 किलोमीटर की दूरी पर स्थित सुपलगा गांव के निवासियों की नियति आज भी अधूरी मूलभूत सुविधाओं के इर्द-गिर्द घूम रही है। गांव की सबसे बड़ी और वर्षों पुरानी समस्या है— मछली नदी पर एक स्थायी पुल का न होना। सरकारी तंत्र की घोर लापरवाही का अंदाज़ा इस बात से लगाया जा सकता है कि बरसात खत्म होते ही, ग्रामीण प्रशासन की राह ताकने के बजाय, प्रतिवर्ष स्वयं लकड़ी और बल्लियों का उपयोग कर एक अस्थाई ‘देशी जुगाड़’ पुल तैयार करते हैं। यही जोखिम भरा ढाँचा उनके दैनिक जीवन का एकमात्र सहारा बन चुका है।

बरसात में कट जाता है जन-जीवन

वर्षा ऋतु में मछली नदी के विकराल रूप धारण करने पर यह जुगाड़ पुल बह जाता है और सुपलगा का संपर्क शेष दुनिया से पूरी तरह कट जाता है। यह अलगाव न केवल आवागमन बाधित करता है, बल्कि जानलेवा भी साबित होता है। ग्रामीणों के अनुसार, नदी पार करने के प्रयास में कई लोग अपनी जान गंवा चुके हैं।

स्वास्थ्य संबंधी आपातकाल की स्थिति में गांववासियों को इलाज के लिए अस्पताल तक पहुंचने हेतु 15 किलोमीटर लंबा अतिरिक्त चक्कर काटना पड़ता है। इसके अलावा, गांव में हाईस्कूल की सुविधा न होने और संपर्क कटने के कारण बच्चों की शिक्षा भी बुरी तरह प्रभावित होती है। ब्लॉक मुख्यालय या पड़ोसी गांव तक पहुंचने के लिए भी लोगों को हर बार 20 किलोमीटर तक का अतिरिक्त रास्ता तय करने की मजबूरी है।

सरकारी बेरुखी पर ग्रामीण आक्रोश

ग्रामीणों ने बताया कि मछली नदी पर स्थायी पुल के निर्माण की मांग सालों से लंबित है। स्थानीय प्रशासन और संबंधित अधिकारियों को कई बार हादसों और जानमाल के नुकसान के बारे में सूचित किया गया, लेकिन आज तक कोई ठोस कार्ययोजना तैयार नहीं की गई। इसी उपेक्षा के कारण, हर साल बरसात का पानी कम होते ही, गांव के पुरुष और युवा एकजुट होकर श्रमदान करते हैं और अपने लिए यह जीवनरेखा खुद तैयार करते हैं।
सुपलगा गांव की यह त्रासदी यह सवाल खड़ा करती है कि ग्रामीण भारत में विकास के दावों के बीच, यह गांव आज भी बुनियादी सुविधा से क्यों वंचित है? और आखिर कब तक यहां के लोगों को सरकारी दायित्वों की पूर्ति के लिए अपने ‘जुगाड़’ पर निर्भर रहना पड़ेगा?

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button