छत्तीसगढ़

160 बार ज्ञापन देने के बाद भी मोदी की गारंटी नहीं हुई पूरी, कोरोना में जान गंवाने वाले NHM कर्मचारियों पर दमनपूर्ण कार्रवाई, NHM संघ ने स्वास्थ्य मंत्री के बयान का किया खंडन, मुख्य मांगों को दरकिनार कर भ्रामक जानकारी फैलाने का लगाया आरोप

रायपुर: छत्तीसगढ़ में राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन (NHM) के संविदा स्वास्थ्य कर्मचारी 18 अगस्त से अपनी 10 सूत्री मांगों को लेकर अनिश्चितकालीन हड़ताल पर हैं। 20 दिनों से जारी इस आंदोलन में अब और तेजी आ गई है, क्योंकि NHM संघ ने स्वास्थ्य मंत्री श्याम बिहारी जायसवाल के बयान का खंडन करते हुए कहा है कि सरकार उनकी मुख्य मांगों को दरकिनार कर रही है और भ्रामक जानकारी फैला रही है।
संघ के प्रदेश अध्यक्ष डॉ. अमित मिरी ने प्रेस वार्ता में बताया कि विधानसभा चुनाव 2023 के दौरान बीजेपी ने अपने घोषणापत्र में ‘मोदी की गारंटी’ का वादा किया था, जिसमें संविदा स्वास्थ्य कर्मचारियों की समस्याओं का समाधान शामिल था। हालांकि, सरकार बनने के 20 महीने बाद और 160 से अधिक बार ज्ञापन देने के बावजूद उनकी मांगों पर कोई सुनवाई नहीं हुई। इसी उपेक्षापूर्ण रवैये के कारण कर्मचारियों को मजबूरन आंदोलन का रास्ता अपनाना पड़ा।

ये हैं NHM कर्मचारियों की 10 प्रमुख मांगें:

* संविलियन/जॉब सुरक्षा
* पब्लिक हेल्थ कैडर की स्थापना
* ग्रेड पे का निर्धारण
* कार्य मूल्यांकन पद्धति में सुधार
* लंबित 27% वेतन वृद्धि
* नियमित भर्ती में सीटों का आरक्षण
* अनुकंपा नियुक्ति
* मेडिकल या अन्य अवकाश की सुविधा
* स्थानांतरण नीति
* न्यूनतम 10 लाख का चिकित्सा बीमा

स्वास्थ्य मंत्री के बयान का खंडन

स्वास्थ्य मंत्री के उस बयान का खंडन करते हुए, जिसमें उन्होंने कहा था कि मुख्य मांगों का निराकरण केंद्र सरकार की अनुमति से होगा, संघ ने स्पष्ट किया कि स्वास्थ्य राज्य का विषय है और इसके लिए पूरी तरह से राज्य सरकार जिम्मेदार है। उन्होंने भारत सरकार के संयुक्त सचिव मनोज झालानी द्वारा भेजे गए एक पत्र और सूचना के अधिकार (RTI) से मिली जानकारी का हवाला देते हुए बताया कि कर्मचारियों के नियमितीकरण सहित अन्य सुविधाओं के लिए राज्य सरकार ही जिम्मेदार है।

संघ ने उन 5 मांगों पर भी आपत्ति जताई जिन पर सरकार ने सहमति की बात कही थी:

* ट्रांसफर नीति: संघ का कहना है कि कमेटी बनाकर विलंब किया जा रहा है और इसकी कोई समय-सीमा निर्धारित नहीं है।
* CR व्यवस्था में पारदर्शिता: संघ ने मांग की है कि अपीलेट अथॉरिटी का अंतिम निर्णय आने तक कर्मचारी को सेवा से न हटाया जाए।
* कैशलेस बीमा: संघ आयुष्मान भारत के माध्यम से बीमा देने से सहमत नहीं है, और उनका कहना है कि 5 करोड़ रुपये की कर्मचारी कल्याण राशि बिना उपयोग के लैप्स हो जाती है।
* लंबित वेतन वृद्धि: 27% वेतन वृद्धि को घटाकर 5% कर दिया गया, लेकिन इसका कोई सर्कुलर जारी नहीं हुआ है।
* सवैतनिक अवकाश: इस मामले में राज्य कार्यालय को निर्णय लेने का अधिकार दिया गया है, जो कि व्यावहारिक नहीं है। संघ का मानना है कि इसका समाधान जिला स्तर पर ही होना चाहिए।

दमनपूर्ण कार्रवाई के विरोध में सामूहिक त्यागपत्र

आंदोलन के दौरान सरकार ने दमनपूर्ण कार्रवाई करते हुए कर्मचारियों को 24 घंटे में वापस काम पर लौटने की चेतावनी दी थी। इसके विरोध में कर्मचारियों ने चेतावनी पत्र की प्रति जलाकर अपना रोष व्यक्त किया। इसके बाद, मुख्यमंत्री विष्णु देव साय से हस्तक्षेप की अपील करने के कुछ ही घंटों बाद, संघ के 29 प्रदेश और जिला स्तरीय पदाधिकारियों को सेवा से बर्खास्त कर दिया गया।

इस कार्रवाई के विरोध में 4 सितंबर को पूरे प्रदेश के कर्मचारियों ने अपने-अपने जिला कार्यालयों में सामूहिक त्यागपत्र देकर आंदोलन को और तेज करने की घोषणा किया था।

हड़ताल के कारण पोषण पुनर्वास केंद्र, बच्चों का स्वास्थ्य परीक्षण, टीबी-मलेरिया की जांच, टीकाकरण, प्रसव और नवजात शिशु स्वास्थ्य केंद्र जैसी आवश्यक स्वास्थ्य सेवाएं बुरी तरह प्रभावित हुई हैं, जिससे आम जनता को भारी परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है।
प्रेस वार्ता में संघ की ओर से डॉ. अमित कुमार मिरी, कौशलेश तिवारी, डॉ. रवि शंकर दीक्षित, हेमंत सिंहा, प्रफुल्ल कुमार पाल, पूरन दास, आशीष नन्द, डॉ. गौरव तिवारी, हिरेन्द्र कर, अमन दास, टिकेश्वरी साहू, और अशोक उइके सहित कई अन्य पदाधिकारी उपस्थित थे। संघ ने सरकार से तत्काल बातचीत कर इस मुद्दे का समाधान निकालने की मांग की है।

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