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जनजातीय अस्मिता के महानायक: 9 इंजीनियरिंग डिग्री, हिंकले न्यूक्लियर प्लांट के डिजाइनर, इंदिरा गांधी सरकार में मंत्री और ‘आरक्षण डीलिस्टिंग’ के प्रखर समर्थक रहे बाबा कार्तिक उरांव के शताब्दी समारोह में कल मुख्यमंत्री अंबिकापुर में होंगे शामिल

अंबिकापुर। छत्तीसगढ़ के माननीय मुख्यमंत्री बुधवार, 29 अक्टूबर 2025 को सरगुजा जिले के अंबिकापुर दौरे पर रहेंगे। वे यहां महान जनजातीय नेता, नौ इंजीनियरिंग डिग्रीधारी, सांसद और पूर्व केंद्रीय मंत्री रहे बाबा कार्तिक उरांव की जन्म शताब्दी समारोह में मुख्य रूप से शामिल होंगे।
मुख्यमंत्री सचिवालय द्वारा जारी कार्यक्रम के अनुसार, मुख्यमंत्री जशपुर से सीधे अंबिकापुर पहुँचेंगे और दोपहर 2:00 बजे से 3:00 बजे तक अंबिकापुर स्थित कार्यक्रम स्थल पर समारोह में शिरकत करेंगे।
इंजीनियरिंग के महापुरुष: 9 डिग्रीधारी, ‘हिंकले न्यूक्लियर प्लांट’ के डिजाइनर
बाबा कार्तिक उरांव (जन्म: 29 अक्टूबर 1924; निधन: 8 दिसंबर 1981) अपनी पीढ़ी के सबसे शिक्षित जनजातीय नेताओं में से एक थे। उन्होंने इंजीनियरिंग में नौ (9) डिग्रियाँ हासिल की थीं, जिनमें भारत और इंग्लैंड की शिक्षा शामिल थी। उनकी सबसे बड़ी तकनीकी उपलब्धि यह थी कि उन्होंने दुनिया के सबसे बड़े स्वचालित न्यूक्लियर पावर स्टेशन, ‘हिंकले न्यूक्लियर पावर प्लांट’ का डिजाइन तैयार किया था।

राजनीतिक कद: तीन बार सांसद और केंद्रीय नागरिक उड्डयन मंत्री
इंजीनियरिंग के शानदार करियर को छोड़कर, उन्होंने जनजातीय समाज के अधिकारों के लिए राजनीति में प्रवेश किया। वे लोहरदगा लोकसभा क्षेत्र से तीन बार सांसद चुने गए और प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की सरकार में केंद्रीय नागरिक उड्डयन एवं संचार मंत्री के रूप में भी कार्य किया।

आरक्षण के लिए ऐतिहासिक संघर्ष: ‘डीलिस्टिंग’ के प्रखर समर्थक
बाबा कार्तिक उरांव का सबसे बड़ा राजनीतिक और सामाजिक संघर्ष मतांतरित जनजातीय लोगों को आरक्षण के लाभ से बाहर करने की मांग को लेकर था। उनका स्पष्ट मत था कि विदेशी संस्कृति अपनाने वाले लोग मूल समाज के अधिकारों को छीन रहे हैं। उन्होंने इस अन्याय को उजागर करने के लिए ‘बीस वर्ष की काली रात’ नामक पुस्तक लिखी और 1970 में 348 सांसदों के हस्ताक्षर युक्त एक ज्ञापन प्रधानमंत्री को सौंपा।

अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति संशोधन विधेयक 1967 में पेश
संविधान के अनुसार अनुसूचित जाति और जनजाति की सूची में परिवर्तन होता रहता है। इसमें संशोधन को लेकर अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति आदेश (संशोधन) विधेयक 10 जुलाई 1067 को लोकसभा के पटल पर रखा गया। विचार-विमर्श के लिए उसे एक संयुक्त समिति के सुपुर्द किया गया। जिसके सदस्य लोहरदगा के सांसद कार्तिक उरांव भी थे। समिति ने बहुत छानबीन के बाद 17 नवंबर 1969 को लोकसभा में सिफारिश के साथ अपनी रिपोर्ट सौंप दी। इस सिफारिश में विधेयक में आवश्यक बदलाव का सुझाव दिया गया। विधेयक में प्रस्ताव रखा गया कि जिस व्यक्ति ने भी जनजाति मत और विश्वासों का परित्याग कर दिया है, ईसाई या इस्लाम धर्म अपना लिया है, वो अनुसूचित जनजाति का सदस्य नहीं समझा जाएगा। संसद की संयुक्त समिति ने इसे प्रायः सर्वसम्मति से पारित किया था। इसके बाद एक वर्ष तक इसकी बहस लोकसभा में नहीं हुई। देश के कोने-कोने से ईसाई मिशन के प्रतिनिधि दिल्ली आकर प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी से मुलाकात कर विरोध जताने लगे।

ईसाई मिशनियों के विरोध के बावजूद 348 सांसदों ने संयुक्त समिति की सिफारिश को स्वीकार करने का आग्रह इंदिरा गांधी से किया। 10 नवंबर 1969 तक इस समर्थन पत्र पर लोकसभा के 322 और राज्यसभा के 26 सदस्यों ने हस्ताक्षर कर मांग पत्र प्रधानमंत्री को सौंपा। जिसके बाद 17 नवंबर 1970 को लोकसभा में इस विधेयक पर बहस शुरू हो गई। उसी दिन नागालैंड और मेघालय के मुख्यमंत्री नई दिल्ली आकर प्रधानमंत्री से मुलाकात की। 17 नवंबर 1970 को भारत सरकार की ओर से संशोधन आया कि संयुक्त समिति की सिफारिश विधेयक से हटा ली जाए। कार्तिक उरांव ने इसका जोरदार तरीके से विरोध किया। 24 नवंबर 1970 को कार्मिक उरांव को विधेयक पर अपनी बात रखनी थी, उसी दिन सुबह में कांग्रेस पार्टी के सभी सदस्यों को सचेतक का संदेश मिला कि पार्टी के सभी सदस्य सरकार के हर संशोधन में साथ दें। कार्तिक उरांव ने करीब 55 मिनट तक पार्टी के अंदर सचेतक के साथ इस पर बहस की। शांत वातावरण में बहस हुई। उस दौरान 75 प्रतिशत सदस्यों ने संयुक्त समिति का साथ दिया।

जनजातीय हितों के लिए अंतिम क्षण तक संघर्ष करने वाले बाबा कार्तिक उरांव का निधन 8 दिसंबर 1981 को संसद भवन के गलियारे में हृदय गति रुकने से हुआ था। मुख्यमंत्री का यह दौरा उनके महान योगदान को श्रद्धांजलि अर्पित करने का अवसर है।

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