अंबिकापुर सेंट्रल जेल में ‘वसूली का तंत्र’: बुनियादी सुविधाओं के लिए वसूली, कैदी की पत्नी ने 80 हज़ार रुपये ऑनलाइन ट्रांसफर का दिया प्रमाण, 4 जेल प्रहरी बर्खास्त

अंबिकापुर। छत्तीसगढ़ की जेल व्यवस्था में व्याप्त भ्रष्टाचार और बंदियों की प्रताड़ना का एक सनसनीखेज मामला सामने आया है, जिसने मानवाधिकारों और जेल प्रशासन की पारदर्शिता पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। अंबिकापुर केंद्रीय जेल में बंद एक कैदी के परिवार से ऑनलाइन माध्यमों से अवैध उगाही के आरोपों की पुष्टि होने के बाद राज्य सरकार ने तत्काल और कठोर कार्रवाई करते हुए चार जेल प्रहरियों को सेवा से बर्खास्त कर दिया है।
बर्खास्त किए गए प्रहरियों में नीलेश केरकेट्टा, लोकेश टोप्पो, ललईराम और चंद्र प्रकाश शामिल हैं। इन पर हत्या के मामले में आजीवन कारावास की सजा काट रहे कैदी मुकेशकांत मल्हार की पत्नी अमरीका बाई ने गंभीर आरोप लगाए थे।
प्रताड़ना और ‘सुविधा शुल्क’ का खेल
अमरीका बाई की लिखित शिकायत के अनुसार, उनके पति को जेल के भीतर मामूली सुविधाओं—जैसे परिवार से फोन पर बात करने, मुलाकात की अनुमति या साफ-सफाई के सामान—के लिए भी नियमित रूप से पैसे देने के लिए मजबूर किया जा रहा था। महिला ने आरोप लगाया कि प्रहरियों की इस ब्लैकमेलिंग से तंग आकर उसने अब तक 70 से 80 हजार रुपये तक की राशि ऑनलाइन ट्रांसफर की है। उन्होंने अपनी शिकायत के समर्थन में मोबाइल लेन-देन के स्क्रीनशॉट और बैंक ट्रांजेक्शन डिटेल्स के पुख्ता सबूत भी अधिकारियों को सौंपे।
जांच में चारों प्रहरियों के खिलाफ लगे अवैध वसूली के ये गंभीर आरोप पूर्णतः सिद्ध पाए गए, जिसके बाद विभाग ने तत्काल प्रभाव से उन्हें सेवा से बर्खास्त करने का आदेश जारी कर दिया।
क्या एक व्यापक ‘तंत्र’ है सक्रिय?
मिली जानकारी के अनुसार, यह मामला केवल एक बंदी तक सीमित नहीं है। जांच में अन्य बंदियों से भी इसी प्रकार की उगाही के संकेत मिले हैं, जिससे यह आशंका गहरा गई है कि केंद्रीय जेल अंबिकापुर में अवैध वसूली का एक संगठित तंत्र काम कर रहा था। इस घटना के बाद गृह विभाग ने स्पष्ट कर दिया है कि जेलों में बंदियों के शोषण या किसी भी प्रकार की अवैध उगाही को बिल्कुल बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। नतीजतन, प्रदेश की अन्य जेलों में भी समान शिकायतों की आंतरिक जांच शुरू कर दी गई है।
अंबिकापुर केंद्रीय जेल की इस घटना ने एक बार फिर जेलों में बंदियों की सुरक्षा, मानवाधिकारों के उल्लंघन और जेल कर्मियों की जवाबदेही जैसे महत्वपूर्ण पहलुओं पर चिंताजनक स्थिति उजागर की है। राज्य सरकार के लिए यह आवश्यक हो गया है कि वह केवल बर्खास्तगी की कार्रवाई तक सीमित न रहे, बल्कि पूरे निगरानी तंत्र को मजबूत कर ऐसी घटनाओं की पुनरावृत्ति को रोके।




