क्रांतिकारी सुखदेव का आज जन्म दिवस जानिए उनके बारे में कुछ महत्वपूर्ण बातें

अम्बिकापुर । क्रांतिकारी सुखदेव थापर आसुखदेव थापर का जन्म पंजाब के लुधियाना में एक पंजाबी खत्री परिवार में हुआ था. पिता की मौत के बाद उनके चाचा ने उन्हें पाला. लेकिन किशोरावस्था में ही वो तमाम क्रांतिकारी नौजवानों गए थे.
आज की पीढ़ी जब भगत सिंह की मूर्ति को दो लोगों की मूर्तियों से घिरा पाती है, तो बहुत कम लोग हैं, जो ये सवाल पूछते हैं कि ये बाकी दोनों कौन हैं. यानी सुखदेव और शिवराम राजगुरू. जब वो पढ़ते हैं तो उन्हें पता चलता है कि सेंट्रल असेम्बली में बम फेंकने तो भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त गए थे. इनकी मूर्तियां यहां क्यों लगाई जाती हैं. सुखदेव, जिनका पूरा नाम सुखदेव थापर है, उनकी आज जयंती है. इस मौके पर आप उनके बारे में जान सकते हैं.
भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु तीनों को ही लाहौर षडयंत्र केस में फांसी हुई थी. जबकि सेंट्रल असेम्बली बम केस में बटुकेश्वर दत्त को उम्र कैद की सजा दी गई थी. तीनों को एक ही दिन फांसी हुई. इसलिए इन तीनों का मेमोरियल भी एक ही जगह बनाया गया यानी पंजाब के फीरोजपुर में हुसैनीवालां गांव, जहां तीनों का अंतिम संस्कार सतलज नदी के किनारे किया गया था.
सुखदेव थापर का जन्म पंजाब के लुधियाना में एक पंजाबी खत्री परिवार में हुआ था. पिता की मौत के बाद उनके चाचा ने उन्हें पाला. लेकिन किशोर जीवन में ही वो तमाम क्रांतिकारी नौजवानों के संपर्क में आ गए थे. जलियां वाला बाग की घटना ने उनके मन पर भी विदेशी राज के विरुद्ध गहरा असर डाला था.
पहले वो नौजवान सभा से जुड़े, बाद में वो एचएसआरए यानी हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन से जुड़ गए. जिसके चीफ तब चंद्रशेखर आजाद बनाए गए थे. शचीन्द्र नाथ सान्याल को काले पानी की सजा होने के बाद आजाद ने ये जिम्मेदारी संभाली थी. संस्था को एक नया नाम, नया रूप दिया गया और ऐसे में सुखदेव थापर को ये जिम्मेदारी दी गई कि वो पंजाब, तब उसमें पाकिस्तान का पंजाब भी शामिल था, समेत उत्तर भारत के कई इलाकों का काम देखेंगे.
आधिकारिक रूप से वो एचएसआरए के प्रमुख बनाए गए थे. हालांकि भगत सिंह के सिर पर उस वक्त पंजाब की यूनिट के पॉलटिकल मामलों का प्रभार था. दरअसल भगत सिंह काफी पढ़ने लिखने वाले व्यक्ति थे, कई पत्र पत्रिकाओं में लेख लिखा करते थे. सुखदेव संगठन खड़ा करने में, योजनाएं बनाने में, पुलिस को चकमा देने में माहिर थे.
उनकी अगुवाई में पंजाब और उत्तर भारत के कई इलाकों में नौजवानों को संगठन से जोड़ा गया और इकाइयां खड़ी की गईं. लाहौर में एक बम फैक्ट्री भी तैयार की गई. लाहौर षडयंत्र केस जिसमें लाला लाजपत राय की मौत का बदला लेने के लिए किसी पुलिस अधिकारी को मारने की योजना बनाई गई, उसमें भी सुखदेव का बड़ा रोल था. तभी सुखदेव को उस केस में मुख्य अभियुक्त माना गया था. इसलिए भगत सिंह और राजगुरू के साथ उनको भी फांसी की सजा सुनाई गई थी.
आज सुखदेव थापर के योगदान को नई पीढ़ियां कम ही जानती हैं. जरूरत है कि एक कांतिकारी संगठक के तौर पर नए सिरे से उनके बारे में शोध किया जाए. यही उनको सच्ची श्रद्धाजंलि होगी।