छत्तीसगढ़

तहसीलदार-नायब तहसीलदारों की हड़ताल को मिला लिपिक संघ का साथ

हिन्द शिखर समाचार । 17 सूत्रीय मांगों को लेकर अनिश्चितकालीन हड़ताल पर गए तहसीलदार और नायब तहसीलदारों को अब उनके ही कार्यालयों में काम करने वाले राजस्व लिपिक संघ का भी पूरा समर्थन मिल गया है। इस एकजुटता ने सरकार के लिए एक बड़ी चुनौती खड़ी कर दी है, क्योंकि इसके बिना राजस्व से संबंधित कोई भी काम करना संभव नहीं है।

हड़ताल की मुख्य वजहें

यह हड़ताल अचानक नहीं हुई है, बल्कि ‘छत्तीसगढ़ कनिष्ठ प्रशासनिक सेवा संघ’ द्वारा लंबे समय से उठाई जा रही मांगों का परिणाम है। इनकी मुख्य मांगों में वेतन वृद्धि से ज्यादा कार्यप्रणाली और सुरक्षा से जुड़े मुद्दे शामिल हैं, जिनमें प्रमुख हैं:

न्यायिक सुरक्षा का अभाव: तहसीलदार एक अर्द्ध-न्यायिक अधिकारी होते हैं, लेकिन उन्हें अपने फैसलों के खिलाफ होने वाले मुकदमों और अनावश्यक दबाव से बचाने के लिए कोई कानूनी कवच नहीं मिलता।

संसाधनों की कमी: कई तहसीलों में अधिकारियों के पास अतिक्रमण हटाने या निरीक्षण के लिए सरकारी वाहन तक नहीं हैं। डिजिटल इंडिया के दौर में भी वे पुराने तरीकों से काम करने को मजबूर हैं।

असुरक्षित कार्यक्षेत्र: भू-माफियाओं से सरकारी जमीन मुक्त कराना या संवेदनशील सीमांकन जैसे जोखिम भरे कामों के लिए उन्हें पर्याप्त सुरक्षा नहीं मिलती।

असीमित कार्यभार: राजस्व कार्यों के अलावा चुनाव, आपदा प्रबंधन और विभिन्न सरकारी योजनाओं का अतिरिक्त बोझ भी इन्हीं अधिकारियों के कंधों पर है, जिससे उनका काम-जीवन संतुलन बिगड़ चुका है।
जनता पर सीधा असर

इस हड़ताल का सबसे बड़ा खामियाजा प्रदेश की आम जनता भुगत रही है। आज से प्रदेश की 200 से अधिक तहसीलों और उप-तहसीलों में कामकाज पूरी तरह से ठप है।

किसानों के भूमि नामांतरण, बंटवारे और सीमांकन जैसे महत्वपूर्ण कार्य रुक गए हैं।

छात्रों और जरूरतमंदों के आय, जाति और निवास प्रमाण पत्र नहीं बन पा रहे हैं।

संपत्ति की खरीद-बिक्री से जुड़े पंजीयन और राजस्व रिकॉर्ड के काम ठप हैं।

राजस्व न्यायालयों में हजारों मामले लंबित हो गए हैं, जिससे न्याय का इंतजार कर रहे लोगों की मुश्किलें बढ़ गई हैं।

लिपिक संघ का समर्थन

राजस्व लिपिक संघ द्वारा इस आंदोलन का समर्थन देने के बाद अभी हम मान जा रहा है कि आंदोलन और तेज होगा .
संघ के प्रदेश सचिव मुकेश कुमार तिवारी ने अपने बयान में कहा, “हम तहसील कार्यालयों में अधिकारियों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर काम करते हैं। जब एक अधिकारी को बिना संसाधनों के परिणाम देने के लिए मजबूर किया जाता है तो यह पूरे सिस्टम का अपमान है। इसलिए यह लड़ाई सिर्फ उनकी नहीं, हमारे प्रशासनिक स्वाभिमान की भी है।”
इस समर्थन का मतलब है कि अब सरकार के लिए वैकल्पिक व्यवस्था से काम चलाना लगभग असंभव है, क्योंकि कार्यालयों का संचालन लिपिकों के बिना नहीं हो सकता। इसने अधिकारियों और कर्मचारियों के बीच एक अभूतपूर्व एकजुटता प्रदर्शित की है। अब गेंद पूरी तरह से सरकार के पाले में है कि वह इस प्रशासनिक गतिरोध को खत्म करने के लिए क्या कदम उठाती है।

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