अम्बिकापुर

Video :पेसा कानून के बेहतर क्रियान्वयन के लिए सरगुजा संभाग के तीन जिलों सरगुजा, बलरामपुर एवं सूरजपुर जिले के 19 ब्लॉकों के आदिवासी समाज के पदाधिकारियों एवं प्रबुद्धजनों के साथ लटोरी में टीएस सिंह देव की अध्यक्षता में परिचर्चा का आयोजन

अम्बिकापुर/पेसा कानून के बेहतर क्रियान्वयन हेतु नियम बनाने के संबंध में सरगुजा संभाग के तीन जिलों सरगुजा, बलरामपुर एवं सूरजपुर जिले के 19 ब्लॉकों के आदिवासी समाज के पदाधिकारियों एवं प्रबुद्धजनों से सूरजपुर जिले के ग्राम लटोरी में एक दिवसीय परिचर्चा का आयोजन किया गया, जिससे समाज के बीच से बेहतर सुझाव प्राप्त हुए हैं। कार्यक्रम की अध्यक्षता पंचायत एवं स्वास्थ्य मंत्री टी.एस. सिंह देव ने की कार्यक्रम में स्कूली शिक्षा एवं आदिम जाति, जनजाति विकास मंत्री डॉ प्रेम साय सिंह, विधायक लुंड्रा डॉ प्रीतम राम, विधायक भटगांव पारसनाथ राजवाड़े, श्रम कल्याण बोर्ड के अध्यक्ष शफी अहमद, जिला पंचायत सरगुजा अध्यक्ष श्रीमती मधु सिंह, जिला कांग्रेस सरगुजा अध्यक्ष राकेश गुप्ता एवं सूरजपुर जिलाध्यक्ष श्रीमती भगवती राजवाड़े, पंकज सिंह, आशीष मोनू अवस्थी सहित अन्य गणमान्यजन उपस्थित थे।

परिचर्चा को संबोधित करते हुए पंचायत एवं स्वास्थ्य मंत्री टी.एस. सिंह देव ने कहा कि पांचवी अनुसूचित क्षेत्र में प्रशासन एवं नियमन को लेकर पेसा एक्ट क्या है, इसके नियम क्या-क्या हो, इसके लिए आप सबके साथ बैठकर हम चर्चा करेंगे। आज हम अविभाजित सरगुजा के 19 ब्लॉकों से यहां उपस्थित हैं, देश में पेसा कानून तो लागू है, किन्तु कुछ राज्यों से कानून बना लिया है, कुछ राज्यों में नहीं बन पाया है, हमारे राज्य में भी कानून के रूप में लागू हो इसके लिए हम प्रयासरत हैं।


1990 के दशक में जब पंचायतीराज कानून को लागू किया गया तो यह महसूस किया गया की आदिवासी क्षेत्रों में उनके विशेष व्यवस्था को परंपरागत रूप में, उनके सामाजिक एवं धार्मिक प्रबन्धन की रक्षा की आवश्यकता है। इसे ध्यान में रखकर पेसा कानून बनाया गया और देश में लागू है, कानून तो लागू है किंतु कानून के रूप में अभी भी नहीं है। छत्तीसगढ़ में कानून के रूप में कैसे लागू हो इसके लिए आपके बीच में आये हैं। कुछ राज्यों में कानून बनाया गया है उनमें महाराष्ट्र, गुजरात, हिमाचल प्रदेश, आंध्रप्रदेश सहित कुछ राज्य हैं, हम उन राज्यों के कानून का भी अध्ययन कर रहे हैं और उसमें से क्या हम रख सकते हैं और क्या नया जोड़ सकते हैं, इस पर आप सब का सुझाव चाहिए। छत्तीसगढ़ राज्य के कई विभागों में पेसा को लागू किया गया है, लेकिन इसके नियम नहीं हैं। छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनाव के दौरान हमने इसे घोषणा पत्र में शामिल किया था और कहा था कि पेसा कानून को लागू करेंगे, इसे लेकर ही हम आपके बीच हैं आपके मांग के अनुरूप नियम बनाये और उसका पालन हो, इसे लेकर आपके बीच आकर इसकी ड्राफ्टिंग करा रहे हैं।


अनुसूचित क्षेत्र में समाज के लोगों का जो मानना है कि हमारे सामाजिक, धार्मिक परम्पराओं को जो सदियों से चले आ रहे हैं, उसकी सुनवाई नहीं हो पा रही है, इसे लेकर कई बार अलग-अलग राज्यों में सामाजिक आंदोलन भी हुए हैं, सरगुजा संभाग में ही पत्थलगढ़ी जैसी बात सामने आयी है,ऐसा क्यों हो रहा है, उनकी मांग क्या है, हम पेसा कैसे लागू कर सकते हैं और इन बातों पर लगाम लगाया जा सकता है, इसे लेकर पेसा कानून को लागू करने शीघ्र नियम बनाने हेतु कार्यवाही कर रहे हैं।
पेसा कानून को पूर्णतः लागू करने को लेकर सरकारें भी कई बार सोचती हैं कि इसे लागू करने के बाद कहीं हमारे अधिकार सीमित न हो जायें, लेकिन मेरा ऐसा मानना है कि राज्य सरकारों के अपने अधिकार हैं और इसे लागू करने के बाद ऐसी कोई बात नहीं होनी है, जो कि पेसा को लेकर सोचा जाये। इन सब बात को ध्यान में रख कर अभी हम ब्लॉकवार कार्यक्रम आयोजित कर रहे हैं, जिसमें आदिवासी समाज के लोग, उनके संगठनों से जुड़े लोग, उनके लिए कार्य कर रही संस्थाओं और आदिवासी समाज के रिटायर्ड अधिकारीगण जो इस पर कार्य कर रहे हैं, सभी के साथ मिलकर इसकी ड्राफ्टिंग हम कर रहे हैं। इसके पश्चात आपके समाज के प्रमुख लोगों को बुलाकर उन्हें ड्राफ्ट दिखाएंगे और जो सुधारने एवं जोड़ने लायक होगा उसे पूर्ण कर अपने मंत्री मंडल के साथियों के साथ मुख्यमंत्री जी के पास लेकर जाएंगे और फिर इसे कैबिनेट में लाने की कार्यवाही आगे की जायेगी। किन्तु आज आप सबके पास अन्य राज्यों के कानून दिए गए हैं मैं आपको कंडिकावार बता रहा हूँ, इनमें हमें क्या जोड़ना है और क्या हटाना है, क्या कुछ ऐसे नियम रखने हैं जो अन्य राज्यों के लिए मॉडल बने इसे लेकर आप सबके सुझाव की आवश्यकता है।
पेसा कानून के प्रभावी संचालन हेतु बनाये जाने वाले नियमों के संबंध में अलग-अलग ब्लॉकों से अलग-अलग बिंदु पर चर्चा हुई, इस दौरान परम्परागत ग्रामसभा के निर्माण एवं सचिव की नियुक्ति को लेकर ब्लॉक उदयपुर से सुझाव प्राप्त हुआ, वहां के सदस्यों ने सुझाव दिया कि परम्परागत रूप से ग्राम, मोहल्ला, टोलो के रूप में अलग-अलग ग्रामसभा का निर्माण हो क्यों कि ग्राम पंचायत के वृहद ग्रामसभा में सभी पारा, मोहल्ले के लोग अपनी बात नहीं रख सकते, साथ ही सचिव का चयन ग्रामसभा उसी ग्राम पंचायत से करेगी, इसमें बाहर ग्राम का सचिव न हो। वहां लिए गए निर्णयों को मानने के लिए ग्राम पंचायत बाध्य हो ऐसे नियम बनाया जाये।
पारंपरिक ग्राम सभा के अध्यक्ष के चयन को लेकर सीतापुर ब्लॉक के लोगों ने सुझाव देते हुए कहा कि सालों से वर्षों से पारम्परिक रूप में हमारा समाज बैगा, मुखिया, पटेल, कुरी, कोटवार के माध्यम से ही प्रशासनिक रूप में ग्रामसभा का संचालन करती है, अतः पेसा के नियम में यह प्रावधान हो कि पारम्परिक ग्रामसभा के माध्यम से ही अध्यक्ष का चयन हो सहमति के आधार पर चुनाव से नहीं और अध्यक्ष अनुसूचित समाज से हो।
ग्रामसभा कोष को लेकर अम्बिकापुर ब्लॉक के द्वारा सुझाव दिया गया कि पंचायत को मिलने वाले सरकारी कोष पर पारंपरिक ग्राम सभाओं का अधिकार होगा और जो निर्णय पारंपरिक ग्रामसभा करेंगे, उसी के अनुसार राशि खर्च होगी, ग्राम सभा को स्थानीय होने वाली कुल आमदनी का 75% हिस्सा ग्राम सभा के अधीन होगा। कोष के सम्पूर्ण नियंत्रण हेतु ग्रामसभा की तीन सदस्यीय कमेटी होगी, जिसमें पारंपरिक ग्रामसभा का सचिव, एक महिला सदस्य एवं एक अन्य सदस्य होगा, यह समिति चक्रीय प्रणाली से संचालित होगी, जिसका पूरा नियंत्रण ग्रामसभा करेगी।
विवाद समाधान को लेकर बतौली ब्लॉक के अनुसूचित जनजाति समाज के लोगों ने सुझाव दिया कि विवाद समाधान पूर्व के पारंपरिक ग्रामसभाओं के आधार पर हो, पुलिस अपराध कायम करने के दौरान एक बार ग्रामसभा को सूचित करे तथा सिर्फ ग्रामसभा ही नहीं, बल्कि जनपद परिषद एवं जिला परिषद का भी गठन हो, जिससे पेसा का कानून सही रूप में क्रियांवित हो सके।
जल-जंगल-जमीन के अधिकार विषय पर ओड़गी ब्लॉक द्वारा अपना विचार रखते हुए कहा गया कि गौण खनिज पर 50% हिस्सा प्रभावित परिवारों का है, संसाधन के उपयोग एवं किसी को देने की पूरी जिम्मेदारी पारंपरिक ग्रामसभा की होगी।
लखनपुर के द्वारा शासन की योजनाओं हेतु हितग्राहियों के चयन को लेकर सुझाव देते हुए बताया गया कि ग्राम पंचायत ग्रामसभा के अधीन है, इसलिए हितग्राही चयन की जवाबदेही ग्रामसभा की है, पंचायत में सरपंच, सचिव और उपसरपंच खुद से न करें, इसलिए पेसा में प्रावधान हो कि ग्रामसभा ही हितग्राही का चयन करेंगे, वहीं मान्य होगा।
लघु जल प्रबंधन विषय पर अपनी बात रखते हुए मैनपाट द्वारा सुझाव दिया गया कि पारम्परिक जल स्रोतों को बढ़ावा देने हेतु पारम्परिक ग्रामसभा समिति बना कर उसका संरक्षण करेगी, जैसे कुआं, तालाब, झरना, पाताल कुआं आदि का संरक्षण हो और नए हैंडपंप ग्रामसभा के प्रस्ताव पर हो, प्रभाव का उपयोग करके हैंडपंप खनन कराने पर पूर्णतः निशेष रहेगा। पारंपरिक ग्रामसभा एक समिति बना कर इन स्रोतों का संरक्षण करे।
गौण खनिज के लाइसेंस एवं पट्टे का प्रावधान विषय पर बलरामपुर ब्लॉक द्वारा सुझाव दिया गया कि ग्रामसभा की अनुमति के बगैर सरकार गौण खनिज खनन एवं पट्टे की अनुमति न दे, पारम्परिक ग्रामसभा को ही रॉयल्टी लेने का अधिकार हो।
परगना सभा के अनुमति से ही खनन का कार्य हो, धार्मिक क्षेत्रों का भी ध्यान रखा जाये, वहां पर कोई भी कार्य एवं खनन से पूर्व महासभा की अनुमति के बगैर खनन का प्रावधान न हो।
नशीले पदार्थ को नियंत्रित कैसे हो विषय पर सूरजपुर ब्लॉक ने अपनी बात रखते हुए कहा कि पारंपरिक ग्रामसभा को यह अधिकार हो कि वह पूर्ण शराबबंदी कर सके। केवल पारंपरिक पर्व त्योहारों के लिए ही जहां पर हड़िया, दारू की आवश्यकता होती है, वहां पर उसके उपयोग की छूट रहेगी। पारंपरिक ग्रामसभा के नशे विरोधी कानून गैर आदिवासियों पर भी लागू होगा। 5 लीटर शराब बनाने की छूट का आदिवासियों से ज्यादा लाभ गैर आदिवासी उठा रहे हैं, वे शराब बेचते हैं जबकि आदिवासी अपने जरूरत के हिसाब से बनाते हैं।
मंत्री सिंह देव ने कहा कि यदि ग्रामसभा तैयार है तो पूर्ण शराबबंदी अपने गांव में लागू कीजिये, सरकार की ओर मत देखिये, सरकार जब करेगी, तब करेगी।
लघु वनोपज का स्वामित्व विषय पर बात करते हुए कहा कि विलेजर्स फारेस्ट में तो वनोपज का संग्रहण हो जाता है, किन्तु रिजर्व फारेस्ट में नहीं हो पाता, वहां के वनोपज के संग्रहण की अनुमति हो और जंगली जानवरों और पक्षियों का शिकार आदि प्रतिबंधित रहेगा। इसके खरीद बिक्री का अधिकार ग्रामसभा के पास हो।
अनुसूचित जनजातियों को धन उधार की नीति को लेकर चर्चा में प्रतापपुर ब्लॉक के द्वारा सुझाव दिया गया कि निजी कंपनियां माइक्रो फायनेंस एवं अन्य के माध्यम से चिट फण्ड कंपनियां शोषण करती हैं, भोले-भाले आदिवासी अपना पैसा खो देते हैं, इसे ध्यान में रख कर पारम्परिक ग्रामसभा को यह अधिकार हो कि कोई भी प्राइवेट कंपनी किसी ग्राम पंचायत में तभी प्रवेश कर कार्य कर सकती है, जब ग्रामसभा की अनुमति हो।
बाज़ार नियंत्रण की समिति के विषय में अपने सुझाव रखते हुए शंकरगढ़ से आये आदिवासी समाज के लोगों ने कहा कि सबसे पहले बाजारों में प्लास्टिक को प्रतिबंधित किया जाये, क्योंकि बाज़ार के दूसरे दिन इतने मात्रा में प्लास्टिक उड़ते हैं कि खेत बर्बाद हो जाते हैं, तथा बाज़ार पूरी तरह से पारंपरिक हो और स्थानीय लोगों को प्राथमिकता दी जाये।
पारंपरिक रीति-रिवाजों को संरक्षित करने को लेकर अपना सुझाव देते हुए प्रेमनगर के लोगों ने कहा कि ग्राम में बैगा हमारा पुजारी होता है, गांव के सारे पूजा पाठ वहीं करता है, हम पारंपरिक रूप में बैगा पूजा को मानते हैं, किन्तु सरकार जब गांव में योजनाओं का शिलान्यास और लोकार्पण करती है तो बैगाओं को नहीं बुलाती, पंडित पूजा में ध्यान देती है, इसे लेकर पेसा में प्रावधान होना चाहिए, बैगा को उसका हक देना चाहिए। हमारे गुड़ी, देवों को सरकार ने जबरन ट्रस्ट और न्यास में परिवर्तित कर आदिवासियों को वहां से हटा कर गैर आदिवासियों को अध्यक्ष और सचिव बना दिया गया है और आदिवासी इन सब में कहीं नहीं हैं। बच्छराज कुंवर न्यास के लिए लगभग 40 ग्राम पंचायतों की आपत्ति के बावजूद एसडीएम द्वारा मामला लंबित रख कर न्यास गठन हेतु सरकार को प्रस्ताव भेज दिया गया, जो पूर्णतः आदिवासियों के साथ धोखा है। पेसा में प्रावधान हो कि ऐसे न्यास और ट्रस्ट के गठन बिना ग्रामसभा के प्रस्ताव के न हो।
मानव संसाधन के उपयोग विषय पर बोलते हुए भैयाथान ब्लॉक के प्रतिनिधियों ने कहा कि कोरोना के दौरान देखा गया कि किस गांव से कितने लोग बाहर काम कर रहे हैं उसकी कोई जानकारी ग्राम पंचायत में नहीं थी, इसलिए एक श्रमिक पंजी हो जिसमें गांव में गांव से बाहर काम करने वाले मजदूर एवं उनके परिवार की पूरी जानकारी हो और कौन कितना दिन काम कर रहा है, किसे काम नहीं मिला इसकी जानकारी लेते हुए स्थानीय स्तर पर कार्य उपलब्ध कराने की पहल ग्रामसभा से हो। मजदूरी का निर्धारण ग्रामसभा करे।
शासकीय कर्मचारियों का नियंत्रण विषय पर बात रखते हुए रामानुजनगर के सदस्यों ने कहा कि शासकीय कर्मचारियों के अच्छे काम, खराब काम और उपस्थिति जिस गांव में वे पदस्थ रहेंगे, उस गांव के ग्रामसभा को यह अधिकार मिलनी चाहिए वे जो रिपोर्ट देंगे, उसी के आधार पर उनका सीआर बने और वेतन बने। साथ ही पंचायत के सरपंच और सचिव को दिया गया एकाधिकार समाप्त हो, ग्रामसभा का फैसला अंतिम होना चाहिए।
वहीं दूसरी ओर आदिवासी समाज में यह परम्परा थी कि लड़की के शादी के बाद पिता के संपत्ति पर उसका अधिकार नहीं होगा, किन्तु वर्तमान में पटवारी द्वारा पिता की मृत्यु के पश्चात लड़के और लड़की दोनों का नाम जमीन के लिए चढ़ा दिया जाता है, जबकि 5वीं अनुसूची में आदिवासियों को मिले परम्परागत प्रावधान को राजस्व विभाग मानता ही नहीं है, जब कि यह कानून है। छत्तीसगढ़ के सभी 85 अनुसूचित ब्लॉकों में इसका कड़ाई से पालन कराना सरकार की जवाबदेही है।
ग्रामसभा के संचालन समिति के अध्यक्ष, सचिव एवं अन्य पदों पर नियुक्ति विषय पर चर्चा करते हुए राजपुर के प्रतिनिधियों ने कहा कि पारंपरिक रूप में पीढ़ियों से आपसी सहमति पर सारे पदों पर चाहे वो मुखिया हों, पटेल, बैगा, कोटवार की नियुक्ति होती है, वहीं प्रक्रिया अपनायी जानी चाहिए और उसके कार्यकाल की एक नियत अवधि 3 वर्ष या 5 वर्ष तक कर देनी चाहिए।
बौद्धिक संपदा के अधिकार विषय पर अपना सुझाव रखते हुए वाड्रफनगर के प्रतिनिधियों ने पारंपरिक उत्सवों एवं पारंपरिक सामानों के संरक्षण हेतु प्रयास करने तथा महासभा स्तर पर संग्रहालय बनाने एवं पारंपरिक वस्तुओं के उपयोग को बढ़ावा देने की बात कही गई।
खाद्य सुरक्षा एवं पोषण विषय पर सुझाव देते हुए चांदो के प्रतिनिधियों ने कहा कि हम अपने पारंपरिक कंदमूल, भाजी, वनों से प्राप्त औषधियों के विकास को प्राथमिकता देंगे, जिससे बाजार के मिलावट से दूर रहें।
अंध-विश्वास एवं जादू टोना नियंत्रण पर अपनी बात रखते हुए लुंड्रा के प्रतिनिधियों ने कहा कि न तो हम नास्तिक हैं और न ही आस्तिक, हम आदिवासी तो वास्तविक हैं, हमारी परंपरा में कई चीजें ऐसी हैं जो कुछ विशेष बातों को लेकर केंद्रित है लेकिन काफी लोग उसे अंधविश्वास एवं जादू-टोना मान लेते हैं। जादू टोना के मामले में कोई भी एफआईआर हो इससे पहले ग्रामसभा के प्रमुख लोगों से विचार विमर्श कर लें, हर मामले सही नहीं होते।
170(ख) के सवाल पर परिचर्चा को संबोधित करते हुए मंत्री डॉ प्रेम साय सिंह ने कहा कि मेरे से काफी लोग मिलते हैं और आदिवासी लड़कियों के विवाह को लेकर कानून में बदलाव की बात करते हैं। मैं आप सभी से जानना चाहता हूं कि आदिवासी लड़की यदि गैर आदिवासी लड़के से विवाह करती है तो क्या उसे आदिवासी के अधिकार मिलने चाहिए या नहीं।
इस सवाल के उत्तर में उपस्थित लोगों ने कहा कि आदिवासी लड़की यदि गैर आदिवासी से विवाह करती है तो उसके आदिवासी के नाते मिलने वाले सारे अधिकार पूर्णतः बन्द कर दिए जाने चाहिए, क्यों कि आदिवासी लड़कियों से शादी करके काफी लोग आदिवासियों की जमीनें खरीद कर एकत्र कर रहे हैं।
वहीं कुछ लोगों ने कहा कि गैर आदिवासी से विवाह की हुई लड़की के जितनी भी संपपत्ति उसके नाम पर खरीदी जायेगी, उसके पति की मृत्यु के पश्चात केवल उसकी या उसके संतान की होगी, पति के घर वालों की नहीं।
डॉ प्रेमसाय सिंह ने कहा कि पेसा पर आप लोगों ने जो-जो सुझाव दिए हैं काफी सार्थक है और हम सब मिलकर बेहतर नियम बना सकते हैं और अच्छा ड्राफ्ट तैयार करेंगे।
170(ख) के सवाल का जवाब देते हुए पंचायत मंत्री सिंहदेव ने कहा कि जमीन ही आदिवादियों कि पहचान है, आपकी संस्कृति, परम्परा, धार्मिक रीति-रिवाज कहां से आये आपकी जमीन से जिससे आप जुड़े हुए हैं। गैर आदिवासी क्षेत्रों में आदिवासियों की जमीन कलेक्टर के अनुमति पर बेचने के प्रावधान को लेकर आदिवासी मंत्रणा समिति विचार कर रही है, मैंने तो इसमें असहमति दर्शायी है, आप सब का क्या सुझाव है आदिवासी मन्त्रणा समिति से जुड़े विधायकों से मिलकर अपनी बात रखिये, एक जमीन ही है जो आपको एक दूसरे से जोड़े रखता है, यदि इसे ही खो देंगे या बेच देंगे तो क्या बचेगा?
मंत्री सिंह देव ने कहा कि घोषणा पत्र में किये गए वायदे के मुताबिक पेसा लागू करने नियम बनाने हेतु आप सब के बीच आज आये हैं, हम समस्त 85 अनुसूचित ब्लॉकों में आदिवासी समाज के लोगों से सुझाव ले रहे हैं, इसका ड्राफ्ट तैयार कर आपके प्रमुख लोगों से चर्चा कर उसमें सुधार एवं परिवर्तन कर मुख्यमंत्री जी से मिलेंगे, जिनके माध्यम से कैबिनेट में ले जाकर इसे लागू करने की प्रक्रिया करेंगे। मेरा तो मानना है कि इसके लिए तीन मंत्रियों की मंत्रणा समिति बना कर इस पर और अच्छा से कार्य हो मैं मुख्यमंत्री जी से ऐसी मांग रखूंगा। ताकि कानून लागू होने के बाद कोई गलती या फिर ऐसी चीजें न आएं, की फिर से बदलाव की मांग की जाये।

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