नई शिक्षा नीति को मोदी केबिनेट की मंजूरी ….नई शिक्षा नीति से बदल जाएगी देश की पूरी शिक्षा व्यवस्था
नई दिल्ली – भारत सरकार ने नई शिक्षा नीति (NEP) को मंजूरी देते हुए मानव संसाधन विकास मंत्रालय का नाम बदल कर शिक्षा मंत्रालय कर दिया है। इसका उद्देश्य है कि पूरे देश की शिक्षा में आमूलचूल बदलाव किया जाए। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में हुई कैबिनेट की बैठक में इसे हरी झंडी दी गई। NEP पर जल्द ही केंद्रीय मंत्री प्रकाश जावड़ेकर और रमेश पोखरियाल निशंक अहम घोषणाएँ करते हुए महत्वपूर्ण जानकारियाँ साझा करेंगे।
इस बार कोरोना वायरस की वजह से अक्टूबर-नवम्बर में सेशन शुरू हो रहा है और केंद्र सरकार चाहती है कि इससे पहले NEP को सम्पूर्ण रूप से लागू कर इसके तहत पढ़ाई शुरू हो जाए। इसके ड्राफ्ट को इसरो प्रमुख रहे के कस्तूरीरंगन की अध्यक्षता वाली विशेषज्ञों की समिति ने तैयार किया है और पीएम मोदी ने 1 मई को इसकी समीक्षा की थी। कुछ नॉन-हिंदी राज्यों ने इसमें हिंदी पर जोर देने की बात करते हुए आपत्ति जताई है, जिसके समधाम का भरोसा दिया गया है।
सरकार का मुख्य जोर शिक्षा में समानता पर है और साथ ही सभी को गुणवत्ता वाली शिक्षा की जद में कैसे लाया जाए, इस पर जोर दिया गया है। नए फ्रेमवर्क के जरिए 21वीं सदी में ज़रूरी स्किल्स पर जोर दिया गया है। साथ ही पर्यावरण, कला और खेल जैसे क्षेत्रों को भी प्राथमिकता दी गई है। भारत की विविध भाषाओं को ध्यान में रखते हुए इसे तैयार किया गया है। शिक्षा के आदान-प्रदान में ऊपर से नीचे तक तकनीक के इस्तेमाल को प्राथमिकता दी गई है।
अब सवाल ये है कि NEP में है क्या? आधिकारिक घोषणा होने के बाद इस बारे में विस्तृत विवरण आएगा। तब तक आप निम्नलिखित बिंदुओं के जरिए इसे अच्छी तरह से समझ सकते हैं और इसके उद्देश्य को जान सकते हैं।
- शिक्षा का यूनिवर्सल एक्सेस: जिन्होंने स्कूल-कॉलेज ड्राप कर दिया है, उन्हें भी शिक्षा की पहुँच में लाना। 3-18 उम्र समूह के सभी छात्र-छात्राओं को। 2030 तक स्कूली शिक्षा के छत तले लाना।
- नया पाठ्यक्रम, नए तौर-तरीके: पहले 5 वर्ष तक के बच्चों को फाउंडेशन स्टेज में रखा जाएगा। उसके बाद के 3 साल के बच्चों को प्री-प्राइमरी स्टेज में रखा जाएगा। अगले 3 वर्ष वाले प्रिपेटरी या लैटर प्राइमरी में रहेंगे। मिडिल स्कूल के पहले 3 साल में छात्रों अपर प्राइमरी समूह में रखा जाएगा। 9वीं से 12वीं तक तक छात्र सेकेंडरी स्टेज में रहेंगे।
- आर्ट्स और साइंस के बीच न बने गैप: आर्ट्स, ह्यूमनिटीज, साइंस और स्पोर्ट्स के साथ-साथ वोकेशनल विषयों में अच्छे से पढ़ाई हो, छात्रों को इन्हें चुनने की स्वतंत्रता मिले और सब पर ध्यान दिया जाए।
- स्थानीय भाषा/मातृभाषा में उपलब्ध हो शिक्षा: 8 साल तक के बच्चे किसी भी भाषा को आसानी से सीख सकते हैं और कई भाषाएँ जानने वाले छात्रों को भविष्य में करियर में भी अच्छा स्कोप मिलता है। इसीलिए, उन्हें कम से कम 3 भाषाओं की जानकारी दी जाए।
- स्कूलों में त्रिभाषीय फॉर्मूला: इसे ‘थ्री लैंग्वेज फॉर्मूला’ कहा गया है। स्थानीय क्षेत्रों और वहाँ की संस्कृति को ध्यान में रखते हुए इसे पिछली शिक्षा नीतियों की तरह ही रखा जाएगा।
- भारत की क्लासिक भाषा की जानकारी: 6 से 8 कक्षा तक छात्रों को भारत की भाषा और उसे जुड़े इतिहास व साहित्य-संसाधन से परिचित कराया जाएगा। समृद्ध भाषाओं को बनाए रखने के लिए ये ज़रूरी है।
- शारीरिक शिक्षा: फिजिकल सक्रियता पर विशेष ध्यान दिया जाएगा। खेल, योग, मार्शल आर्ट्स, व्यायाम, नृत्य और बागबानी सम्बंधित गतिविधियों में बच्चों की सक्रियता बढ़ाई जाएगी। स्थानीय शिक्षकों को इसके लिए प्रशिक्षित किया जाएगा।
- राज्यों के लिए संस्था: सभी राज्यों में पठन-पाठन पर नज़र बनाए रखने के लिए स्वतंत्र ‘स्टेट स्कूल रेगुलेटरी बॉडी’ का गठन किया जाएगा। ये सभी राज्यों में अलग-अलग होगी।
- नेशनल रिसर्च फाउंडेशन: प्रोपोज़ल्स की सफलता के आधार पर रिसर्च के लिए पर्याप्त फंड्स मुहैया कराए जाएँगे। सभी विषयों में रिसर्च को बढ़ावा दिया जाएगा।
- राष्ट्रीय शिक्षा आयोग: NEP एक नया ‘नेशनल एजुकेशन कमीशन’ बनाने के लिए भी राह प्रशस्त करेगा, जिसके अध्यक्ष खुद प्रधानमंत्री होंगे। शिक्षा के परिदृश्य में समीक्षा, बदलाव और निगरानी के लिए यही संस्था कार्य करेगी।
- शिक्षा मंत्रालय: मानव संसाधन मंत्रालय का नाम अब शिक्षा मंत्रालय होगा, जिससे शिक्षा पर जोर दिया जा सके।
इस तरह से भारत की शिक्षा में दशकों से हो रहे बदलाव की माँगों को पूरा किया गया है। अक्सर ये माँग उठती रहती है कि अब तक वामपंथियों के बनाए ढर्रे पर ही देश की शिक्षा व्यवस्था धक्के खा रही है, जो न तो नए युग के हिसाब से बच्चों को योग्य बना पाता है और न ही उन्हें अपने देश एवं संस्कृति का महत्व समझा पाता है। इतिहास में किए गए छेड़छाड़ को दूर करने की भी माँग उठती रहती है।