छत्तीसगढ़राज्यसरगुजा संभाग

सरगुजा अंचल में जल प्रतिष्ठा का मेला गंगा दशहरा आज से… बच्चों को संस्कृति एवं संस्कार सिखाने का माध्यम.. जलाशयों को गंगा तुल्य मानकर कलश,-कक्कन,मौरी और नाल को विसर्जित करने का धार्मिक पर्व- गंगा दसहरा

दशहरा में विशेष आलेख..

पोड़ी मोड़-प्रतापपुर। छत्तीसगढ़ के सरगुजा अंचल में गंगा दशहरा का पर्व काफी धूमधाम व हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है।भारतीय जीवन और संस्कृति में नदियों का विशेष महत्व है। इनमें देव नदी गंगा भारतीयों के जीवन में धार्मिक आस्था से जुड़ी हुई है। और इसी से जुड़ा है गंगा दशहरा का पावन पर्व और दशहरा मेला। सरगुजा अंचल में गंगा दशहरा पर बिल्कुल ही अनोखे ढंग से मनाया जाता है इस अवसर पर यहां 5 दिनों तक का भव्य मेला का आयोजन होता है।
जल प्रतिष्ठा का मेला गंगा दसहरा सूरजपुर जिले के सौतार,प्रतापपुर, सरहरी,जजावल ,करकोली धरमपुर, जजावल,कल्याणपुर और गंगापुर सहित अनेकों स्थानों पर लगता है।जिसमें स्थानीय सैकड़ों महिला-पुरूष बड़े उत्साह के साथ गंगा दशहरा मनाते हैं।

सरगुजा वासियों के मान्यता है कि गंगा दशहरे के दिन पूरइन कमल की पत्ती से युक्त जलाशय में मां गंगा विराजमान होती हैं इसलिए इसी जलाशय की गंगा तुल्य मानकर विधि- विधान से पूजा- अर्चना किया जाता है। गंगा दशहरे के दिन स्थानीय जलाशय को गंगा तुल्य मानकर साल भर आयोजित शुभ कार्यों के समान जैसे विवाह का मौर्व, कंगन, कलश, बच्चे के जन्म के समय का नाल व छठी का बाल आदि का विधिपूर्वक पूजा कर विसर्जित किया जाता है। गंगा दशहरे के दिन बैगा पुरोहित विधि- विधान से पूजा- अर्चना करवाता है।प्रायः देखा जाता है कि आदिवासियों के सभी वर्गों में मुर्गा, बकरा और शराब देवको चढ़ाते हैं किंतु गंगा दशहरा पर्व में ए सब वर्जित रहता है। गंगा पूजा नारियल,सुपारी,फल-फूल और अगरबत्ती से किया जाता है।

गंगा दशहरे के दिन दान का विशेष महत्व होता है इसलिए विसर्जित करने जाने के पूर्व गांव में सगे संबंधियों को निमंत्रित कर उन्हें तेल कपड़ा रोटी और यथाशक्ति रुपए दान देकर दशहरा मेला देखने जाने के लिए कहा जाता है। इसी दिन जलाशय में पुरइन कमलफूल के जड़ के निचे बच्चे के जन्म के समय का नाल को गाड़ दिया जाता है। यह कार्य गांव का बैगा विधि- विधान से पूजा करवा कर करता है।घर का जो व्यक्ति विसर्जित करने जाता है वह उपवास रहता है।विसर्जित कर घर लौटने पर सगे संबंधियों को भोजन पर आमंत्रित किया जाता है। ग्रामीणों का कहना है कि हम लोग अपने धार्मिक अनुष्ठानों के चीजों को गंगा में विसर्जित पुण्य मानते हैं, किंतु गंगा मैया हम से काफी दूर हैं गंगा दशहरे के दिन देवी गंगा पृथ्वी लोक में आई थी इसलिए इस दिन किसी भी जलाशय को गंगा तुल्य मानकर पूजा-अर्चना कर शुभ कार्यों के सामान को विसर्जित कर पूर्ण लाभ लेते हैं।


जल प्रतिष्ठा का मेला गंगा दशहरा

सूरजपुर जिले के सौतार,प्रतापपुर, सरहरी,जजावल ,करकोली धरमपुर, कल्याणपुर और गंगापुर सहित अनेकों स्थानों पर लगता है।सरगुजा अंचल में गंगा दशहरा  अवसर पर कठपुतली विवाह करने की परंपरा प्रचलित है। लकड़ी कास्ट के गुड्डे गुड़िया बनाए जाने के कारण इसे कठपुतली कहा जाता है। विश्व की प्राचीन रंगमंच में खेले जाने वाली मनोरंजक कार्यक्रमों में से एक है कठपुतली का मंचन। वर्ष 2013 से 21 मार्च को विश्व कठपुतली दिवस मनाया जाता है। सरगुजा अंचल में भी गंगा दशहरे के अवसर पर कठपुतली विवाह करने की प्रथा काफी प्राचीन समय से रही है।

गंगा दशहरा और कठपुतली विवाह

सरगुजा अंचल में प्रतिवर्ष जेष्ठ मास शुक्ल पक्ष दशमी को गंगा दशहरे के अवसर पर गांव के कुंवारी लड़कियां घर वालों के सहयोग से कठपुतली का विवाह करती हैं। लकड़ी के गुड्डा- गुड्डी बनाकर 3 दिनों तक विवाह के सभी रस्मों का पालन करते हुए कठपुतली विवाह का आयोजन किया जाता है।इस आयोजन में घर के बड़े बुजुर्ग विवाह के सभी रस्मों मंडप गाड़ने से विदाई तक को बताने में सहयोग करते हैं। गांव की कुंवारी लड़कियां गुड्डा- गुड्डी की मां और लड़के पिता का रोल अदा करती हैं। ग्रामीणों का कहना है कि इस आयोजन का उद्देश्य घर के बच्चों का विवाह संस्कार की जानकारी देना और मनोरंजन कराना रहता है। कठपुतली विवाह के उपरांत गंगा दशहरा के दिन इसे गंगा तुल्य जलाशय में विसर्जित कर दिया जाता है। आधुनिकता की आड़ में जहां एक ओर परंपराओं के विलुप्त होने का खतरा बना हुआ है वहीं सरगुजा अंचल में बच्चों को विवाह संस्कारों से अवगत कराने का अच्छा माध्यम है कठपुतली विवाह।

सरगुजा अंचल में गंगा दशहरा, मेला और दशहरा गीत है लोकप्रिय

सरगुजा अंचल में गंगा दशहरा को गंगा दशहरा के नाम से जाना जाता है। इस अवसर पर 5 दिनों तक दशहरा मेले का भी आयोजन किया जाता है। सरगुजा अंचल में गंगा दशहरे के अवसर पर 5 दिनों तक मेले का आयोजन किया जाता है। मेले में झूला, खिलौना, दैनिक उपयोग की वस्तुएं फल और मिठाई की दुकानें सजी हुई रहती है। दशहरा मेला में पान की दुकानों का विशेष आकर्षण रहता है क्योंकि इस दिन पान खाने का विशेष महत्व समझा जाता है। युवक- युवतियां पान खाकर व छाता ओढ़कर दशहरा गीतों का गायन करती हैं। दशहरा गीतों में गीत के माध्यम से सवाल- जवाब किया जाता है। दशहरा गीत को धंधा गीत और उधवा गीत भी कहा जाता है। यह सरगुजा अंचल के गंगा दशहरा मेले का विशेष आकर्षण होता है।

सरगुजिहा लोक संस्कृति बोली एवं पुरातत्व को राष्ट्रीय एवं अंतरराष्ट्रीय स्तर पर शोध संगोष्ठियों मे प्रस्तुत कर अंचल को किया गौरवान्वित

राज्यपाल पुरस्कृत व्याख्याता अजय कुमार चतुर्वेदी ने चर्चा के दौरान बताया

“सरगुजिहा लोक संस्कृति के माध्यम से बचों में संस्कार भरने का अच्छा माध्यम है लोक पर्व गंगा दसहरा। साथ ही ग्रमीणों कि मान्यता है कि मा गंगा इस दिन पुरइन के पत्तों से युक्त जलाशय मे विराजमान रहती है इसलिए इन जलाशयों मे शुभ कार्यों के सामग्रियों को विसर्जित कर श्रद्धालु पुण्य का लाभ लेते हैं। श्री चतुर्वेदी ने सरगुजिहा लोक संस्कृति बोली एव पुरातत्व को राष्ट्रीय एवं अंतरराष्ट्रीय स्तर पर शोध संगोष्ठियों मे प्रस्तुत कर अंचल को गौरवान्वित किया है। जिला पुरातत्व संघ सूरजपुर के सदस्य अजय चतुर्वेदी द्वारा सरगुजिहा लोक संस्कृति के विलुप्त होते लोक वाद्ययंत्रों की खोज एव संरक्षण का सराहनीय कार्य किया जा रहा है।”

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