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वैक्सीन नीति पर मोदी सरकार दृढ़ सुप्रीम कोर्ट में कहा कि इसमें न्यायिक हस्तक्षेप की जगह सीमित

कोविड मैनेजमेंट पर सुनवाई के दौरान 30 अप्रैल को सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र से नई वैक्सीन पॉलिसी पर दोबारा विचार करने को कहा था. केंद्र ने 9 मई को इस पर कोर्ट में अपना जवाब दाखिल किया. केंद्र ने कहा कि वैक्सीन पॉलिसी ‘न्यायसंगत वितरण’ सुनिश्चित करती है और इसमें ‘सुप्रीम कोर्ट के दखल की कोई जरूरत नहीं है.’
कोर्ट ने 30 अप्रैल को कहा था कि जिस तरीके से नई पॉलिसी बनाई गई है, प्राइमा फेसी ऐसा लगता है कि ये संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत आने वाली पब्लिक हेल्थ को ‘हानि’ पहुंचा सकती है.  
केंद्र की नई वैक्सीन पॉलिसी के तहत 18-44 आयु वर्ग के लोगों को वैक्सीन देने की जिम्मेदारी राज्यों को दी गई थी. साथ ही राज्य सरकारों और निजी अस्पतालों को सीधे वैक्सीन मैन्युफेक्चरर्स से वैक्सीन खरीदने की इजाजत दी गई थी. इसके लिए वैक्सीन मैन्युफेक्चरर्स को अपने मासिक प्रोडक्शन कोटे का 50 फीसदी राज्यों और निजी अस्पतालों को बेचने की अनुमति मिली थी.

केंद्र ने क्या जवाब दिया?

केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट से कहा कि वैक्सीनेशन पॉलिसी वैक्सीन डोज की सीमित उपलब्धता के साथ ‘न्यायसंगत वितरण’ सुनिश्चित करती है. केंद्र ने कहा कि महामारी के ‘अचानक होने से पूरे देश को एक साथ वैक्सीन देना मुमकिन नहीं था.’
केंद्र ने कहा, “पॉलिसी न्यायसंगत, गैर-भेदभावपूर्ण और दो आयु समूहों में स्पष्ट अंतर रखने वाले कारणों पर आधारित है.”

“इस स्तर की महामारी से निपटने के दौरान पॉलिसी में सुप्रीम कोर्ट के हस्तक्षेप की कोई जरूरत नहीं है. कार्यपालिका के पास जनता के हितों पर काम करते हुए इतनी स्वतंत्रता होती है.” 

केंद्र ने अपने हलफनामे में कहा कि पॉलिसी संविधान के अनुच्छेद 14 और 21 के ‘अनुरूप’ है और राज्यों सरकारों के अलावा एक्सपर्ट्स और वैक्सीन मैन्युफेक्चरर्स के साथ कई बार सलाह करने के बाद बनाई गई है.

वैक्सीन प्राइसिंग पर केंद्र क्या बोला?

प्राइसिंग पर केंद्र ने अपने हलफनामे में कहा कि हालांकि राज्यों को वैक्सीन खरीदनी है लेकिन केंद्र ने मैन्युफेक्चरर्स के साथ अनौपचारिक बातचीत कर सभी राज्यों के लिए एक जैसे दाम सुनिश्चित करे हैं.

केंद्र ने कहा, “वैक्सीन प्राइस का लोगों पर कोई असर नहीं होगा क्यों सभी राज्य सरकारों ने पहले ही लोगों को वैक्सीन मुफ्त देने की घोषणा कर दी है.” 

केंद्र ने कहा कि ये सुनिश्चित किया गया कि सीरम इंस्टीट्यूट और भारत बायोटेक को जनता के पैसों का ‘बेवजह’ लाभ न मिले और लोगों को दोनों डोज के लिए कोई पैसा भी न देना पड़े.

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