आलेख : बीजेपी के 41 साल.. विचारधारा कमाल.. संतोष दास ‘सरल’ जिला संवाद प्रमुख भाजपा

6 अप्रैल को विश्व के सबसे बडे राजनीतिक दल भारतीय जनता पार्टी ने अपना 41 वां जन्मदिन मनाया.. दो सासदों से शुरू हुआ भाजपा का सफर स्थापना के 41 साल बाद आज 303 तक पहुंच चुका है.. 6 अप्रैल 1980 को भारतीय जनसंघ का अपने नये राजनैतिक स्वरूप भारतीय जनता पार्टी बनकर उदय होना आगे चलकर भारत के राजनीतिक इतिहास में एक नया अध्याय लिखेगी ये किसी ने सोंचा भी न था.. डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी, पं. दीनदयाल उपाध्याय, अटल बिहारी बाजपेयी, नानाजी देशमुख, लाल कृष्ण आडवानी, कुशाभाऊ ठाकरे जैसे न जाने कितने संगठन के लिए समर्पित स्वयंसेवकों ने भाजपा को आज के सशक्त व विशाल रूप में देखने के लिए अपना तन, मन, जीवन व जवानी होम कर दिया.. एक विचारधारा जिसे अपने प्रारब्ध से ही राजनीतिक दलों की जमात में अछूत माना गया.. एक वैचारिक अधिष्ठान जिसे साम्प्रदायिकता के नाम पर भारतीयता की पहचान से परे रखा गया.. एक वैश्विक मार्गदर्शी हिंदुत्ववादी सोंच जिसके विरूद्ध सेकुलरिज्म जैसे भ्रामक शब्द गढे गऐ.. एक राजनीतिक दल जिसे हमेशा लोकतंत्र के लिए खतरा बताया गया.. आज उसी दल की पूर्ण बहुमत की सरकार लगातार दूसरी बार हिंदुस्तान में राज कर रही है तथा देश के अस्सी प्रतिशत भू भाग पर जिनकी अपने दलों या समर्थित दलों की राज्य सरकारें हैं.. आजादी के बाद से लेकर आज तक का इतिहास अगर देखें तो कांग्रेस पार्टी की पूर्ण बहुमत की सरकारों के बाद पहली बार गैर कांग्रेसी दलों की पूर्ण बहुमत की ये पहली सरकार है जिसने न केवल अपना कार्यकाल पूरा किया है बल्कि दोबारा देश की जनता द्वारा बहुमत के साथ सत्ता में बैठाऐ भी गए हैं.. जनता के द्वारा दोबारा बहुमत के साथ किसी दल को सत्ता पर बैठाना कोई साधारण घटना नहीं इसे जनता के द्वारा दल विशेष की विचारधारा को मन से स्वीकारना या आत्मसात करना ही कहा जाऐगा.. जिस विचारधारा को राजनीतिक दलों ने धर्म निरपेक्षता के लिए खतरा माना हो उसकी साख पे देश की जनता द्वारा लोकतांत्रिक मुहर लगाकर बहुमत से जिताना देश के बदलते राजनीतिक माहौल को प्रदर्शित करता है.. यदि इतिहास की बात करें तो देश में 50-60 के दशकों से ही सेकुलरिज्म के नाम पर अल्पसंख्यक तुष्टिकरण की जो राजनीति शुरू हुई उसने ही ज्यादातर राजनीतिक दलों को केन्द्र व राज्य की सत्ता पर काबिज किया था.. परंतु अब ऐसा नहीं हो पा रहा क्योंकि भाजपा की राष्ट्र पहले की विचारधारा ने देश में तुष्टिकरण की राजनीति को खत्म करके विकास को ही राजनीति का केन्द्र बना दिया है.. बंगाल, असम सहित पांच राज्यों में हो रहे विधानसभा चुनाव के ओपिनियन पोल के ताजा रूझान तो इसी ओर इशारा करते हैं.. यदि बंगाल में बीजेपी ने बहुमत के साथ सरकार बना ली तो ये साबित हो जाएगा कि देश की शत् प्रतिशत जनता ने बीजेपी की विचारधारा को पूर्णतः अपना भरोसा जताया है.. प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी, गृहमंत्री अमित शाह, जे पी नड्डा, योगी आदित्यनाथ, सहित अन्य भाजपा नेताओं के नेतृत्व में पांचों राज्यों में चल रहे बीजेपी के प्रचार अभियानों में जनता की उमड रही भीड़ ने संकेत दे दिया है.. बहरहाल अब ये कहना लाजमी होगा कि भाजपा की राष्ट्रवादी विचारधारा ने 41 सालों बाद देश के जनमानस पर अपना छाप छोड़ दिया है..