भगवान जगन्नाथ रथ यात्रा आज से…जाने रथ यात्रा का इतिहास व इससे जुड़ी खास बातें
विश्व प्रसिद्ध जगन्नाथ रथ यात्रा को आखिरकार सुप्रीम कोर्ट ने हरी झंडी दे ही दी। सुप्रीम कोर्ट ने कहा इससे पहले प्लेग और कालरा जैसी महामारीयों के बीच भी जगन्नाथ रथ यात्रा सीमित नियम व सीमित श्रद्धालुओं के बीच हुई थी। आइए जानते हैं जगन्नाथ रथ यात्रा का इतिहास सहित पूरी जानकारी। दुनियाभर में मशहूर इस यात्रा का शुभारंभ 23 जून, मंगलवार को हो रहा है। हिंदू कैलेंडर के मुताबिक जगन्नाथ रथ यात्रा आषाढ़ माह के शुक्ल द्वितीय तिथि को शुरू होती है। इसका आयोजन पूरे नौ दिनों तक किया जाता है।
इस यात्रा में जगन्नाथ भगवान अपने भाई बलराम और बहन सुभद्रा के साथ जगन्नाथ मंदिर से निकलते हैं और गुंडिचा मंदिर तक जाते हैं। तीनों भाई बहन वहां सात दिनों तक आराम करते हैं और उसके पश्चात् फिर से अपने धाम पुरी लौट आते हैं। आपको ये जानकारी होगी कि हिंदुओं के चारों धामों में से एक जगन्नाथ पुरी भी है। इस यात्रा में तीन विशालकाय रथों को विशेष साज सज्जा के साथ शामिल किया जाता है और इन रथों को खींचने के लिए हर भक्त लालायित रहता है।
भगवान जगन्नाथ हैं यहां के राजा
लोगों का उद्धार करने के मकसद से भगवान विष्णु पुरुषोत्तम नीलमाधव का रूप लेकर पुरी में अवतरित हुए थे। प्रभु जगन्नाथ को सबर जनजाति के लोग अपना इष्ट देवता मानते है इतना ही नहीं, यहां के लोगों की ये आस्था है कि भगवान जगन्नाथ यहां के राजा हैं और वहां के निवासी उनकी प्रजा। इसी वजह से भगवान हर साल रथ में विराजकर अपनी प्रजा का हालचाल जानने के लिए आते हैं।
मौसी के घर करते हैं विश्राम
इस शाही रथयात्रा के दौरान प्रभु जगन्नाथ को पुरी में नगर भ्रमण कराया जाता है। रथयात्रा के माध्यम से प्रभु जगन्नाथ, बलराम और देवी सुभद्रा रथ में बैठकर जगन्नाथ मंदिर से जनकपुर स्थित गुंडीचा मंदिर जाते हैं जो उनकी मौसी का घर है। दूसरे दिन रथ से भगवान जगन्नाथ, बलभद्रजी और सुभद्राजी की मूर्तियों को पूर्ण विधि के साथ उतारा जाता है और मंदिर में प्रवेश कराया जाता है। गुंडीचा मंदिर में प्रभु के दर्शन को ‘आड़प-दर्शन’ कहा जाता है। इस मंदिर में भगवान की तीनों प्रतिमाओं को सात दिन के विश्राम के बाद 8वें दिन आषाढ़ शुक्ल दशमी को उनका रथ मुख्य मंदिर की ओर प्रस्थान के लिए बढ़ाया जाता है। यह रथ यात्रा श्रीमंदिर से शुरू होकर गुंडीचा मंदिर तक जाती है, इसलिए इसे गुंडीचा महोत्सव भी कहा जाता है। वहीं रथों की वापसी की यात्रा को बहुड़ा यात्रा के नाम से जाना जाता है।यात्रा में शामिल होते हैं तीन रथ
इस शाही यात्रा के लिए तीन रथ तैयार किये जाते हैं। इनमें से एक रथ स्वयं प्रभु जगन्नाथ के लिए, एक उनकी बहन सुभद्रा और तीसरा रथ उनके भाई बलराम के लिए होता है। इन तीनों रथों की ऊंचाई और रंग अलग अलग रखा जाता है। इन रथों को दूर से ही देखकर पता लगाया जा सकता है कि किस रथ पर किनकी सवारी निकाली जा रही है।सभी रथ के हैं विशेष नाम
प्रभु जगन्नाथ के रथ की ऊंचाई 45.6 फीट रखी जाती है और इसमें 18 पहिये लगे होते हैं। उनके विशाल रथ का नाम नंदिघोष है,जो गरुड़ध्वज के नाम से भी जाना जाता है। भगवान जगन्नाथ के रथ का सारथी मतली है। इस रथ को लाल और पीले रंग से ढका जाता है तथा इसमें त्रिलोक्यमोहिनी नाम का ध्वज लगा होता है।
तालध्वज नाम के रथ पर भगवान जगन्नाथ के भ्राता बलराम सवारी करते हैं। 45 फीट ऊंचे इस रथ में 14 पहिये लगे होते हैं। इस रथ को ढकने के लिए लाल और हरे रंग के वस्त्र का उपयोग किया जाता है। इस रथ का सारथी सान्यकी है।
भगवान जगन्नाथ और बलराम की बहन सुभद्रा का रथ भी इस यात्रा में शामिल होता है जिसका नाम दर्पदलन है। 44.6 फीट उंचाई वाले सुभद्रा के रथ में 12 पहिये होते हैं। इस रथ को ढकने के लिए लाल और काले रंग के वस्त्र इस्तेमाल में लाये जाते हैं। इनकी रथ के सारथी अर्जुन हैंं। रथयात्रा की तैयारी बसंत पंचमी से ही हो जाती है शुरू
इन विशाल रथों के निर्माण में किसी भी प्रकार की धातु का इस्तेमाल नहीं किया जाता है। ये रथ पवित्र और विशेष प्रकार के नीम के पेड़ की लकड़ियों से तैयार किए जाते हैं। सबसे पहले ये सुनिश्चित किया जाता है कि वह पेड़ स्वस्थ और शुभ हो। रथों के निर्माण कार्य के लिए काष्ट चुनने की प्रक्रिया बसंत पंचमी के दिन से शुरू होती है और निर्माण कार्य की शुरुआत अक्षय तृतीया के दिन प्रारंभ होती है।