पटकुरा पहाड़ी नदी का जलस्तर बढ़ने से स्कूली बच्चे और ग्रामीण फंसे,पुल निर्माण की मांग पर दो दशकों से ग्रामीणों को मिल रहा है सिर्फ आश्वासन
बरसात के दिनों मे कुकुरटांगा काशीडांड चिता घुटरी पंचायत और ब्लाक मुख्यालय से कट जाते है ग्रामीणों को होती परेशानी
सरगुजा जिले के लखनपुर विकासखंड के सुदूर वनांचल ग्राम पटकुरा और चिता घुटरी के बिच बहने वाली नदी का जल स्तर बढ़ने से मंगलवार के शाम लगभग 4 बजे दो दर्जन से अधिक स्कूली बच्चे और ग्रामीण नदी के दुसरी छोर पर फंसे रहे। पहाड़ी नदी होने के कारण बरसात के दिनों में पटकुरा नदी का जल स्तर बढ़ जाने से नदी पार कर आने जाने वाले स्कूली बच्चों और ग्रामीणों के लिए खतरा बना रहता है। विगत कई वर्षों से ग्रामीणों के द्वारा पटकुरा नदी के ऊपर पुल बनाए जाने की मांग प्रदेश सरकार और स्थानीय विधायकों से की जाती रही है। प्रदेश में सरकार बदला क्षेत्र के विधायक बदले और कई जनप्रतिनिधि बदले परंतु ग्रामीणों की समस्याओं ज्यों कित्यों बनी हुई है। मांगो उपरांत दो दशकों से ग्रामीणों को पुल बनाए जाने का सिर्फ आश्वासन मिल रहा है।परंतु आज तक पुलिया का निर्माण नहीं हो सका। ग्राम पटकुरा के आश्रित ग्राम कुकुरटांगा चिताघुटरी और काशीडांड बरसात के दिनों में नदी में जल स्तर बढ़ने से ब्लॉक मुख्यालय और पंचायत से कट जाते हैं। जिससे तीनों आश्रित ग्रामों के स्कूली बच्चों, गर्भवती महिलाओं और ग्रामीणों को काफी परेशानियों का सामना करना पड़ता है। दो दशकों से यह समस्या बनी हुई है। शासन प्रशासन द्वारा इस ओर ध्यान नहीं दिया जा रहा है। मिली जानकारी के मुताबिक ग्राम पटकुरा के आश्रम ग्राम चिताघुटरी, काशी डांड, कुकुरटांगा में सैकड़ो परिवार निवास रथ है प्रतिदिन स्कूली बच्चों और बीमार ग्रामीणों को नदी पार कर पंचायत और ब्लॉक मुख्यालय आना पड़ता है। बरसात के दिनों में नदी का जल स्तर बड़ने से नदी पार कर आने जाने वाले स्कूली बच्चों और ग्रामीणों को खतरा बना रहता है कई बार नदी पार करने के दौरान मोटरसाइकिल सवार ग्रामीण गिरकर घायल भी हो चुके हैं वहीं एंबुलेंस नहीं पहुंचने से गर्भवती महिलाओं और बीमार ग्रामीणों को खाट में उठाकर पंचायत मुख्यालय नदी पार कर लाना पड़ता है। तब उन्हें एंबुलेंस की सुविधा मिल पाती है। नदी के ऊपर पुल नहीं बनने से कई ग्रामीणों को अपनी जान भी गंवानी पड़ी है। नदी के ऊपर पुल नहीं होने से एंबुलेंस की सुविधा इन आश्रित ग्रामों के ग्रामीणों को नहीं मिल पाता है। पूर्व में सर्पदंश से ग्रामीणों की मौत भी हो चुकी है।