कोरबा

“हमारी-सड़क” राजनीतिक खींचतान उलझी कोरबा की सड़कें

विनोद शुक्ला की रिपोर्ट कोरबा
राजस्व मंत्री का गृह जिला, प्रभारी मंत्री की जवाबदेही, विधानसभा अध्यक्ष की पत्नी का संसदीय क्षेत्र, चार में से तीन विधायक कांग्रेस के और नए- नए कीर्तिमान गढ़ते कोयला खदान। देश के पूर्वोत्तर राज्यों को रौशन करते बिजली वाले बिजली घर।
इसके बाद भी जिले की सूरत नहीं बदलती। राजनैतिक दृष्टिकोण से कोरबा से महत्वपूर्ण जिला छत्तीसगढ़ में कोई और नहीं है। इसके बावजूद सड़कों की जो दुर्दशा अब है, वह पहले कभी नहीं रही। विपक्ष में रहते हुए जो धुरंधर नेता सक्रिय थे, उससे ज्यादा असहाय वह सत्ता में आने के बाद प्रतीत हो रहे हैं। जिले के अफसरों ने तो जैसे आंखें मूंद ली हों। मौजूदा कलेक्टर ने जब जिले में कार्यभार संभाला, तब आते ही 2 दिनों के भीतर जिले का दौरा कर ऐसी समीक्षा की, जिससे लगा कि सारी समस्याओं का समाधान हो जायेगा। लेकिन उस दिन से लेकर आज तक सड़कों के गड्ढे और बड़े होते चले गए। अब से पहले तक प्रशासन इतना निकम्मा और मंत्री, नेता इतने नालायक कभी नहीं दिखे।
सड़कों की दुर्दशा पिछली सरकार में भी बनी हुई थी, लेकिन अभी जो हालात हैं, वह मिसालें कायम करने वाली हैं।
अब जनता को बेवकूफ कैसे बनाया जाता है, ये समझिए- चाम्पा कटघोरा पाली तक की दूरी लगभग 151 किलोमीटर है। इसे केंद्रीय सरकार ने राष्ट्रीय राजमार्ग घोषित किया, सामान्यतः 1 किलोमीटर की सड़क के गुणवत्तापूर्ण निर्माण के लिए 1 करोड़ रुपये का खर्च बैठता है, लेकिन प्रशासन ने इस 151 किलोमीटर सड़क के मरम्मत के लिए डेढ़ करोड़ रुपए स्वीकृत किए हैं। प्रदेश की उर्जाधानी अब सड़कों के परिप्रेक्ष्य में टापू बनने की ओर अग्रसर है। सभी रास्ते पूरी तरह से ध्वस्त हो चुके हैं। जिले में सड़कों का नेटवर्क है, अब तो यह कहना अतिशयोक्ति लगने लगा है। पाली अब पूरी तरह थम गया है। लगातार ट्रकों का आवागमन बंद है, छोटी कार फंसने लगी हैं, बस भी फंस गए। ऐसा लगता है कि अब प्रशासन का प्रयास है कि लोग सड़कों पर पैदल चलने से भी घबराएं। उस दिन तक इंतजार किया जाए जब लोग पैदल भी सड़कों पर ना चल सकें। सड़क खराब होने के कितने गंभीर परिणाम हैं, थोड़ा समझिए।
पाली के व्यापारियों का व्यापार सूखा है। रिश्तेदारों के घर आने-जाने वाले लोगों ने प्रोग्राम ही कैंसिल कर दिए।
हालात यह हैं कि पाली में कुछ युवा सड़क पर फंसने वाली गाड़ियों को गड्ढों से निकालने के लिए हर समय तैनात रहते हैं। व्यापारियों के व्यापार से लेकर रिश्तेदारों के आगमन से मिलने वाली छोटी-छोटी खुशियां, सड़कों के कारण सब काफूर हो चुकी हैं। त्योहारों में भी सन्नाटा पसरा हुआ है।
सबसे ज्यादा तकलीफ वाली बात यह है कि लोगों को फर्क अब भी नहीं पड़ता। सड़कों के पुनर्निर्माण लिए नेताओं और अफसरों को शायद किसी बड़ी अनहोनी का इंतजार है। लेकिन हुक्मरानों को यह समझना चाहिए कि वह जनता के सब्र का इम्तिहान ले रहे हैं।
चुनाव के 1 दिन पहले पैसे के बदले वोट का सौदा करने वाले मतदाताओं को भी सोचना चाहिए। आत्ममंथन भी होना चाहिए। नगरीय निकाय और पंचायत चुनाव करीब हैं। इस बार जब वोट डालने जाएंगे तो सड़कों के गड्ढों के बारे में एक बार जरूर सोचिएगा।
हाल ही में प्रदेश में शायद नंबर दो की पोजीशन रखने वाले मंत्री टीएस सिंह देव कोरबा आए थे। जब उनसे पूछा गया कि सड़कों की ऐसी हालत क्यों है? तब जवाब आया की सरकार ने ऋण माफी के लिए साढ़े 11 हजार करोड़ रुपए खर्च कर दिए। जिसके कारण इस वर्ष सड़क आदि के निर्माण को फण्ड नहीं मिल पाया है। उनके इस कथन से यह बात एकदम साफ हो गई है कि सरकार ने वाहवाही लूटने के लिए ऋण माफी तो कर दी, लेकिन सड़क जैसी मूलभूत समस्या के समाधान के लिए कोई कारगर कदम नहीं उठाया।
एक पहलू यह भी है राष्ट्रीय राजमार्ग स्वीकृत होने के बाद सड़क एनएचएआई को चली गई है। अब इसकी मरम्मत व निर्माण के लिए जो भी फंड आएगा केंद्र सरकार से आएगा। छत्तीसगढ़ में सत्ता परिवर्तन हुआ और कांग्रेस की सरकार आ गई। केंद्र में अब भी भाजपा की मोदी सरकार है।
यह भी संभव है की केंद्र सरकार राज्य सरकार को सड़क निर्माण व मरम्मत के लिए फंड नहीं दे रही हो। इस राजनैतिक खींचतान के बीच सड़क फंस गई है। केंद्र से फण्ड मिल नहीं रहा और राज्य का खजाना खाली है। हिचकोले खा रही है जनता….

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