कोरबा

समय पर एंबुलेंस नहीं मिलने से दूरस्थ गांव में रह रहे विशेष संरक्षित पहाड़ी कोरवा समुदाय की महिला के नवजात शिशु को आखिरकार नही बचाया जा सका…

विनोद शुक्ला कोरबा । विशेष संरक्षित पहाड़ी कोरवा समुदाय की महिला के नवजात शिशु को आखिरकार नही बचाया जा सका। प्रसव पीड़ा से परेशान महिला को अस्पताल ले जाने समय पर एंबुलेंस नहीं मिली और घर पर ही उसका प्रसव हो गया। बाद में डायल 112 की मदद से महिला को कोरबा ले जाना संभव हुआ लेकिन देर होने से नवजात चल बसा। परेशान परिजनों की हरसंभव सहायता करने की बात मेडिकल कॉलेज प्रबंधन कह रहा है।

कोरबा जिले के दूरस्थ गॉव चिरईझुंझ से सम्बंधित इस मामले ने साफ कर दिया है कि बेहद पिछड़े क्षेत्र में सुविधा बढ़ाना जरूरी है। ऐसे इलाके में अशिक्षा और जानकारी का अभाव भी एक बड़ी चुनौती है। और इसकी बड़ी कीमत उन्हें चुकानी पड़ रही है। कोरबा ब्लॉक के चिरईझुंझ निवासी पहाड़ी कौरवा राजेश की पत्नी का 17 अप्रैल को घर पर प्रसव हुआ। इससे पहले उसने एम्बुलेंस की प्रतीक्षा में कई घण्टे दर्द सहा। इसी बीच उष्का प्रसव हुआ। नवजात का वजन सामान्य से काफी कम था। इससे परिजन चिंतित थे।

राजेश ने बताया कि माजरा समझ मे आया तो देर हो चुकी थी। दूसरे दिन नवजात को कोरबा ले जाने एम्बुलेंस की जरूरत महसूस की गई, लेकिन वह नही मिली। तब 112 की टीम ने डेढ़ किमी पदयात्रा कर कांवर से प्रसूता और नवजात को गाड़ी तक लाया और कोरबा के मेडिकल कॉलेज हॉस्पिटल मैं भर्ती कराया।

नवजात को अस्पताल में भर्ती कराने के बाद परिवार को यही लग रहा था कि मामला ठीक है, लेकिन ऐसा नहीं था। कुछ घण्टे बाद उसकी सांसे टूट गई। डॉ रविकांत जातवार ने बताया कि पीड़ित परिवार की जिस स्तर पर सहायता हो सकेगी, की जाएगी।

खबर के अनुसार कोरबा के हॉस्पिटल में भी महिला को काफी बुरे अनुभव झेलने पड़े। इस प्रकरण के बाद पहाड़ी कोरवा दंपत्ति के पास सिर्फ और सिर्फ यही विकल्प है कि वह टूटी उम्मीद के साथ अपने घर को लौटे। लेकिन उसे भविष्य के लिए जानकारी भी बढ़ानी होगी और समझ का दायरा भी।

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