सरगुजा में बनी पहली भोजपुरी फिल्म “बिन तेरे ओ साथी रे ” का प्रसारण… अम्बिकापुर के घड़ी चौक , दुर्गा मंदिर सहित सरगुजा के खूबसूरत वादियों मे हुई है शूटिंग….सरगुजा में फिल्म निर्माण की असीम संभावनाऐं….कलाकारों की उर्वर भूमि है सरगुजा
अम्बिकापुर -भोजपुरी सिनेमा चैनल में सरगुजा छत्तीसगढ़ में बनी पहली भोजपुरी फिल्म “बिन तेरे ओ साथी रे” के प्रसारण के साथ ही जिले में फिल्म निर्माण की असीम संभावनाओं के द्वार खोल दिए हैं। पूरी तरह अंबिकापुर सरगुजा जैसे सुदूर आदिवासी अंचल में बनी इस फिल्म में शहर के घडी चौक, राजमोहिनी भवन, वाटर पार्क, आक्सीजन पार्क, दुर्गा मंदिर सहित ग्राम खैरबार, करजी तथा मैनपाट के खूबसूरत लोकेशन में शूटिंग की गई है.. फिल्म के डायरेक्टर गोपाल पांडेय व प्रोड्यूसर मीना केसरी ने एक शानदार व खूबसूरत फिल्म बनाई है जिसमें फेमस एक्टर गौरव झा व एक्ट्रेस रितु सिंह, वर्मा के साथ स्थानीय कलाकारों को भी काम करने का भरपूर मौका मिला है.. फिल्म के बेहतरीन संगीत ने भोजपुरी चैनलों में गजब धूम मचाई है जिसमें सुप्रसिद्ध गायक उदित नारायण जी का गाया एक खूबसूरत गीत भी शामिल है।
वैसे तो सरगुजा की पावन मिट्टी ने न जाने कितने कलाकारों को जना है परंतु हाल के वर्षों में नये कलाकारों की पौध ने सरगुजा का नाम स्वर्णाक्षरों में दर्ज कराया है। एक ओर जहां गायक संजय सुरीला, गोपाल पांडेय, लखन सिन्हा, लल्लू राजा, राजेश जायसवाल, बबीता विश्वास, अशोक राजवाडे जैसे कलाकारों ने अपने गायन व संगीत से जिले व प्रदेश के बाहर भी अपनी पहचान बनाई है वहीं दूसरी ओर सौरव-वैभव, कुमार वसु, स्तुति जायसवाल जैसे नवोदित गायक कलाकारों ने भी अपनी प्रतिभा के दम पर पूरे देश में लोकप्रियता बटोरी है।
जिले में प्रतिभाशाली कलाकारों की फौज तैयार करने में सुर्वे संगीत, पं. कमला प्रसाद मिश्र, खानवलकर सर तथा मदन थापा जैसे शहर के संगीतकार घरानों का भी उतना ही योगदान है जितना इन कलाकारों के अथक परिश्रम का..
सरगुजा की मिट्टी ने केवल गायक ही पैदा नहीं किए बल्कि वादन में अपना नाम कमाने वाले तबला वादक पिता पुत्र हनीफ खान व नासिर खान, बांसुरी वादक स्व.अताउल्ला खान, तथा सितार वादक स्व.अदीप घोष जैसे कलाकारों को भी अपनी नेमतों से नवाजा है.. अभिनय के क्षेत्र में तो भगवान तिवारी, महेन्द्र मेवाती,राघवेन्द्र मुद्गल,विनय अम्बष्ट, कृष्णा नंद तिवारी, दिनेश सिन्हा, आनंद गुप्त जैसे शानदार कलाकारों की एक लंबी फ़ेहरिस्त है जिसने अपने उम्दा अभिनय से छालीवुड तथा बॉलीवुड में अपनी एक अलग पहचान बनाई है.. सरगुजा जैसे पिछड़े क्षेत्र में नाट्य कला को अपने पसीने से अभिसिंचित करने वालों में ईप्टा के संस्थापक प्रित पाल सिंह अरोरा, स्व.आशुतोष तिवारी, विजय गुप्त, रविन्द्र स्वर्णकार, आशा शर्मा जैसे कर्मवीरों का योगदान भी नहीं भुलाया जा सकता..
जिले में फिल्म निर्माण का कोई लंबा इतिहास तो नहीं पर माना जाता है कि दो दशक पूर्व प्रसिद्ध फिल्मकार माईक पांडेय द्वारा सरगुजा के हाथियों पर बनाये गये डाक्यूमेंट्री से सरगुजा का नाम राष्ट्रीय पटल पर आया.. दूरदर्शन द्वारा निर्मित माता राजमोहिनी देवी पर बनी डाक्यूमेंट्री तथा प्रेमचंद की कहानी ‘मंत्र’ पर नाट्य की शूटिंग भी सरगुजा में ही हुई.. पिछले कुछ सालों में सरगुजा में सरपंच, लंगड़ा राजकुमार, मि.इंडिया का गैजेट तथा लगन मोर सजन से जैसी कुछ क्षेत्रीय व हिंदी भाषाओं की फिल्में बनी पर फिल्म निर्माण व निर्देशन की असल चर्चा हिंदी फिल्म ‘लाईफ में ट्वीस्ट’ से शुरु हुई जिसकी पूरी शूटिंग अंबिकापुर व आसपास के क्षेत्रों में हुई थी.. आगे चलकर भोजपुरी फिल्म ‘बिन तेरे ओ साथी रे’ की सफलता ने सरगुजा में फिल्म निर्माण की संभावनाओं को नया जीवन दिया.. फिल्म निर्माण के साथ साथ निर्देशन में भी सरगुजा के कलाकारों ने हाथ आजमाया है आज दिनेश सोनी, गोपाल पांडेय, अलख मिश्रा जैसे प्रतिभाशाली निर्देशकों ने सरगुजा में फिल्म निर्माण को एक नई दिशा दी है.. सरगुजा के घने जंगल पहाडों की खूबसूरती, खेत खलिहान, खूबसूरत लोकेशन, सर्वयुविधायुक्त होटल, बेहतर साफ सफाई, रिकार्डिंग स्टूडियो तथा शूटिंग में कम खर्च व प्रतिभाशाली स्थानीय कलाकारों की उपलब्धता ने फिल्म निर्माण के लिए बाहर के लोगों को भी आकर्षित किया है.. आने वाले समय में यदि फिल्मों के बडे निर्माता निर्देशक फिल्म बनाने के लिए सरगुजा का रूख करें आश्चर्य मत कीजिऐगा..
आज सरगुजा के लालों का चहुंओर कमाल देखकर गजलकार अहमद हुसैन और मोहम्मद हुसैन साहब की वो सुप्रसिद्ध गजल जिसने अंबिकापुर को एक पहचान दी, जिसे आकाशवाणी अंबिकापुर के प्रथम डायरेक्टर अमीक हंसी ने लिखा था और हुसैन बंधुओं ने गाया था.. जुबां पर आ रही है..
मैं हवा हूँ कहां वतन मेरा..दस्त मेरा ना ये चमन मेरा..
आलेख: संतोष दास सरल,अंबिकापुर
9826165324.