आदिवासी परिवार ने एस डी एम व सरकार से लगाई गुहार, न्याय नही दे सकते तो हमे हमारे गांव सहित छत्तीसगढ़ से भाग जाने दे आदेश, आदिवासी परिवार ने अपना फाइल गायब करने का लगाया आरोप
मुकेश अग्रवाल हिंद शिखर न्यूज पत्थलगांव। पत्थलगांव नगर के चिडरापारा में निवास रत उरांव जाति के आदिवासी परिवार ने वर्षो पूर्व अपने पूर्वजों के द्वारा काबिज भूमि पर उन्हें न्याय नही मिलने तथा उनके फाइल को दबाकर भू माफियाओं को फायदा पहुचाये जाने जैसे फैसले से दुखित होकर आज उक्त परिवार के अनेक लोग एस डी एम न्यायालय पहुचकर एस डी एम से गुहार लगाया है कि जब हमे न्याय नहीं मिल सकता, हमारी फाइल दबा दी जाती है तो हमे अब यहा रहने का कोई अधिकार नही है अतः हमें शासन प्रसाशन हमारे पैतृक जन्म भूमि पत्थलगांव सहित छत्तीसगढ़ राज्य से भी निकल जाने का आदेश दे दे जिससे हम कहि भी दूसरे राज्य जाकर सकून से मजदूरी कर जीवन यापन कर सके। आदिवासी परिवार ने अपने इस मांग की प्रति, महामहिम राज्यपाल, मुख्यमंत्री ट्रायबल आयोग, कमिश्नर सरगुजा सम्भाग, कलेक्ट जशपुर, एवं क्षेत्रीय विधायक को भी प्रेसित किया है
विदित हो कि पत्थलगांव में वर्ष 2018 में आया था एक जमीन घोटाला जिसमे कुछ भू माफियाओं ने रायगढ़ रोड़ सड़क किनारे स्थित उरांव समाज के आदिवासी परिवार की पुरखो के समय से काबिज भूमि तथा वर्षो पूर्व वन विभाग द्वारा रोपित बास जंगल व अन्य लगे वृक्ष वाली भूमि को चेतन दास महंत नामक व्यक्ति ने अपने रिस्तेदार दास नामक आर आई एवं तत्कालीन पटवारी व तसिलदार तथा वन विभाग के कर्मचारी से साठ गांठ कर पूर्व में यहा गोटिया रहे कृत नारायण सिंह के उत्तराधिकारी के नाम की वह भूमि , जो भूमि रायगढ़ रोड़ टावर लाइन के पीछे है उक्त भूमि को सड़क किनारे दरसा कर अलग से नक्सा काटकर आदिवासी परिवार की वर्षो से काबिज भूमि एवं वन विभाग की मुनारा की कुछ भूमि को आदिवासियों को बिना बुलाये नाप कर चेतन दास महंत को कब्जा दे दिया गया। इसका खुलासा तब हुवा जब उक्त भूमि को कुछ माह बाद चार पांच लोगों के नाम चेतनदास महंत ग्राम ठाकुर पोड़ी , विजय अग्रवाल ग्राम लैलूंगा,आदि के पास बेच गया है और उन्हें कब्जा दिलाने जे सी बी ट्रैक्टर से आदिवासी परिवार की काबिज भूमि एवं वन विभाग की भूमि को एवं भूमि में रोपित बास एवं पेड़ पौधों को बिना किसी परमिशन के जे सी बी से उखाड़ फेके जाने लगा जिसका विरोध आदिवासी परिवार के द्वारा मौके पर पहुच कर किया गया तथा वन विभाग को इसकी जानकारी मिलने पर वन विभाग के तत्कालीन रेन्जर दलबल के साथ मौके पर पहुच कर कार्यवाही करते हुवे तीन ट्रैक्टर को जप्त किया गया और शाम होने के कारण जे सी बी चालक अपनी वाहन को लेकर फरार हो गया।यहा तक कि कुछ दिनों बाद ट्रैक्टर मालिको द्वारा रात्रि में वन विभाग में रखे ट्रैक्टर को भी वहा से चोरी कर ले गये जिसकी रिपोर्ट वन विभाग द्वारा पत्थलगांव थाना में दर्ज कराया गया था किन्तु पत्थलगांव पुलिस ने भी शायद वन परिसर से चोरी ट्रेक्टर वाहन को खोजने में कोई रुचि नही दिखाया और क्यो नही दिखाया यह तो पुलिस वाले ही जाने।
वन विभाग पत्थलगांव अपनी भूमि को ही बचाने नही ले रही रुचि,वन मण्डलाधिकारी को भी कर रहे गुमराह
विदित हो कि तत्कालीन रेन्जर पैकरा द्वारा वन रेन्ज की भूमि को निजी व्यक्ति की तथा राजस्व की भूमि बताये जाने को लेकर एस डी एम न्यायालय पत्थलगांव में याचिका भी दायर किया गया किन्तु उनके ट्रान्सफर होने के बाद वन विभाग अपनी भूमि को बचाने तथा चोरी हुई ट्रैक्टर का पता लगाने कोई प्रयास नही किया गया और ना ही अपने वकील से सम्पर्क किया गया यहा तक कि वर्तमान वन मण्डलाधिकारी जशपुर को उक्त भूमि को लेकर विभाग के द्वारा ही गुमराह किया गया कि वह भूमि हमारे अंडर नही आता धरमजयगढ़ के अंतर्गत आता है ऐसे हैं यहा के वन विभाग के अधिकारी कर्मचारी क्या यहा भी साठ गांठ हो गया है ? एस डी एम न्यायालय से फैसला आने के बाद भी वन विभाग अपनी भूमि को बचाने अपील करनेकोई रुचि नही ले रही है, शायद यही कारण है कि जशपुर जिले में वन विभाग के उदासीन रवैये के कारण ही जंगलो से पेड़ पौधे भारी मात्रा में काटे जा रहे हैं,
आदिवासी परिवार की आवेदन की फाइल बन्द तिजोरी में दबा दी गयी, कैसे मिलेगा आदिवासियों को न्याय
आदिवासी उरांव जाति परिवार के सदस्यों ने अपने चार पांच पीढ़ियों से खून पसीने से सींच कर खेती के लायक बनाई खेती की भूमि जिसका उनके पूर्वजो को गाय बछड़ा के चित्र से शुशोभित लाल किताब भी मिला था जो वर्तमान में उनके पास नही है जिसे पूर्व में दीमक खा गया था को जो उन अनपढ़ गरीब आदिवासी परिवार के चार हिस्सो का सहारा था ऐसी भूमि को बचाने तत्कालीन एस डी एम पत्थलगांव,तत्कालीन कलेक्टर जशपुर, तत्कालीन मुख्यमंत्री छत्तीसगढ़ सहित राष्ट्रीय ट्रायबल आयोग भारत सरकार नई दिल्ली के समक्ष आवेदन प्रस्तुत किया गया था जिस पर आर आई, पटवारियों, नायब तसिलदार की एक जांच टीम बनी थी, जांच टीम ने यह पाया था कि सड़क किनारे की उक्त भूमि पर वर्षो से आदिवासी परिवार का कब्जा है जिसके बाद तत्कालीन एस डी एम ने जिला कलेक्टर जशपुर को अपना प्रतिवेदन प्रस्तुत किया था । दुर्भाग्य है कि आज आदिवासियों की आवेदन का फाइल का अता पता नहीं है,और यहा एस डी एम न्यायालय में पूछे जाने पर बताया जाता है कि आदिवासी परिवार की आवेदन का फाइल जशपुर गया था वहाँ से वापस नही आया है। तो क्या अब जशपुर जिले में आदिवासियों के साथ ऐसा ही होता रहेगा जहा फाइल जाये वही दब जाये, और तो और आदिवासी परिवार की आवेदन को दर किनार कर, विवादित भूमि से भू माफियो द्वारा काटे गये सैकड़ो छोटे से लेकर बड़े बड़े पेड़ पौधों को नजर अंदाज कर भू माफियाओं को फायदा पहुचाया गया जबकि एस डी एम श्रीवास ने एक बार पुनः जांच टीम गठित किया था किन्तु ऐसा क्या कारण हुवा की बिना जांच प्रतिवेदन के ही और तत्कालीन एस डी एम के प्रतिवेदन को दरकिनार अपना फैसला सुना दिया। जबकि आदिवासी परिवार ने बार बार कहा था कि कृत नारायण सिंह परिवार की भूमि टॉवर के पीछे है जिसे बस्ती का ही एक परिवार कृतनारायन के समय से अधिया में खेती करते आ रहा है, जिसे मुहल्ले के किसी भी व्यक्ति से पूछा जा सकता है की कृतनारायन कि भूमि कौन सा है।
ऐसा क्या कारण है कि भू माफियाओं की सुनवाई होती है, और आदिवासी परिवार की फाइल दबा दी जाती है।
आदिवासी परिवार द्वारा दिये गये आवेदन के विषय पर एस डी एम चेतन से पूछे जाने पर उन्होंने कहा कि इस मामले की जानकारी इससे पहले मुझे था मुझे यहा आये कुछ ही दिन हुवे है, फाइल को पढूंगा तब कुछ बता पाऊंगा आदिवासी परिवार का विषय को कलेक्टर महोदय के समक्ष रखूंगा।