‘पृथ्वी मित्र’ के राष्ट्रीय स्तर के पुरस्कार से सम्मानित डॉ.जे.पी.श्रीवास्तव का पृथ्वी दिवस पर संदेश..
धरती बोलती है,पर्वतों से प्रति ध्वनियां आती है, वृक्षॊ से सरसराहट के संकेत आते हैं। नदियों और झरनों से कल कल की आवाजें आती हैं । पूरी प्रकृति अपनी भाषा में हमसे कुछ कह रही है, पर विकास की अंधी दौड़ में इन सब की आवाजें सुनता कौन है ॽ आज मानव यह भूल गया है कि जिस दिन अंतिम वृक्ष की अंतिम पत्ती गिर जाएगी और जिस दिन अंतिम झील की अंतिम मछली मर जाएगी, वह दिन मानवीय श्रष्टि का आखरी दिन होगा। स्मरण कीजिये जब आप छोटे थे, उस समय कितने घने वृक्ष थे, कितने जंगल थे, कहां गए वह जंगल और कहां खो गए वो वृक्ष, कितनी नदियां थी, कितने तालाब थे, कितने कुंवे थे, कहां गुम हो गए वह तालाब और कुंवेॽ
आज हम सबको इस बिंदु पर गहन चिंतन करने की आवश्यकता है कि, कहीं यह प्राकृतिक असंतुलन, प्रकृति से मानव की बढ़ती दूरियां और अप्राकृतिक भोज्य और व्यवहार ही कोरोना वायरस की उत्पत्ति का कारण तो नहीं हैॽ
चिकित्सा क्षेत्र में हुये गगनचुंबी विकास के बाद भी, आज किसी के पास, कोरोना वायरस का कोई समुचित निदान नहीं है। इसके लिए संपूर्ण विश्व, हल्दी, लहसुन, आंवला, प्याज, सेंधा नमक, कपूर, अजवाइन, लौंग, बड़ी इलायची, नींबू, दालचीनी जैसी प्राकृतिक वस्तुओं का सहारा ले रहा है। विश्व का चिकित्सा विकास, कोरोना वायरस जैसे अति सूक्ष्म छोटे से कण के सामने हताश नजर आ रहा है, संपूर्ण विश्व निदान नहीं खोज पा रहा, सावधानियों पर आधारित हो गया है। जब एक छोटे से कण के सामने मानव की यह स्थिति है, तब प्रकृति तो अपार है, अनंत है, असीम है।
आज पृथ्वी दिवस हमें धरती और प्रकृति से सानिध्यता तथा प्यार का संदेश दे रहा है,ताकि फिर कभी किसी कोरोना वायरस की उत्पत्ति ना हो !