अधिकारियों की उदासीनता से हमर जंगल हमर आजीविका मिशन हो रहा फेल, किसानों में नाराजगी.. लाखों की लागत से शुरू हुई थी योजना.. मजदूरी, किराया और अन्य कार्यों का लाखों रुपये का भुगतान बकाया..
प्रतापपुर।सपना था ग्रामीणों की आजीविका का साधन बढ़ाते हुए आर्थिक रूप से मजबूत करने का लेकिन इसका लाभ किसी को नहीं मिल रहा है।बात हमर जंगल हमर आजीविका नाम की योजना की है जो प्रतापपुर विकासखण्ड के ग्राम पंचायत पलढा में करीब तीन वर्ष पर शुरू हुई थी।इसके लिए स्थानीय पंद्रह किसानों का चयन हुआ था और करीब तीस एकड़ वन भूमि पट्टे की जमीन पर विभिन्न योजनाओं और सुविधाओं के विस्तार की जिम्मेदारी अलग अलग विभागों को दी गई थी।
वनांचल के किसानों की भूमि का समतलीकरण करते हुए अनाज एवं शाक-सब्जी के उत्पादन के योग्य बनाना, पशुपालन को प्रोत्साहित करना सहित अन्य माध्यमों से किसानों की आजीविका का साधन बढ़ाते हुए उन्हें आर्थिक रूप से मजबूत करना हमर जंगल हमर आजीविका नाम की योजना का उद्देश्य था।प्रतापपुर विकासखण्ड में इस योजना के लिए ग्राम पंचायत पलढा का चयन किया गया था,15 किसानों का चयन करते हुए करीब 30 एकड़ वन भूमि का पट्टा दे विभिन्न विभागों को विभिन्न योजनाओं के तहत कार्य कराने की जिम्मेदारी दी गई थी।जमीन का समतलीकरण,सीमेंट खंभे और जीआई तार से फेंसिंग,कुओं का निर्माण,सोलर पंप की स्थापना सहित अन्य कई कार्य कराए गए जो प्रारंभिक दिनों में युद्धस्तर पर चला।बताया गया था कि भूमि का बेहतर विकास किया जाएगा, ताकि उससे अनाज शाग-सब्जी फल आदि का बेहतर उत्पादन सुनिश्चित हो सके। चयनित स्थानों पर पशुपालन को बढ़ावा देने के लिए शेड का निर्माण भी कराया जाएगा तथा सिंचाई के लिए प्राकृतिक जल स्त्रोत नहीं होने की स्थिति में कूप,डबरी,बोरवेल आदि का निर्माण भी कराया जाएगा।खेतों के मेढ़ो पर हाईब्रिड किस्म के फलदार पौधे लगाए जाएंगे, जिससे शीघ्र उत्पादन प्राप्त हो सकेगा। जिले के अधिकारियों ने किसानों को शासन की उत्कृष्ट योजना का लाभ उठाकर अपनी सामाजिक एवं आर्थिक स्थिति सुदृढ़ करने हेतु प्रेरित किया था।लेकिन अब यह योजना बन्द होती नजर आ रही है और किसानों का इसका लाभ नहीं मिल पा रहा है,सम्बन्धित अधिकारियों ने योजना की निगरानी करना बंद कर दिया है और अब वहां कोई नहीं जाता है।अपने विवेक से किसान थोड़ी बहुत सब्जी की खेती करते हैं लेकिन बताए अनुसार कोई लाभ नहीं मिलने से किसान भी निराश हो गए हैं और यहां मेहनत करना बंद कर दिया है।कई तरह फलदार वृक्ष लगाए गए थे जिनमें से अधिकांश बढ़ नहीं पाए, कुछ क्षेत्र में मूंनगा के पौधे लगाए गए थे,कुछ तय बढ़ रहे हैं लेकिन बाकी की स्थिति अन्य पौधों की तरह हो गई है,बांस के पौधों की स्थिति भी वैसी ही है।क्रेडा द्वारा 5 नग सोलर पंप लगाए थे जो काम नहीं रहे और खराब होते रहते हैं,शासन की यह महत्वाकांक्षी योजना थी लेकिन अधिकारियों की उदासीनता के कारण योजना बन्द होने की स्थिति में है,निर्माण कार्य तो वहां दिख रहे लेकिन न फसल है और नहीं पेड़ पौधे,आर्थिक रूप से मजबूत होने का किसानों का सपना,सपना ही रह गया है।
किराया, मजदूरी और अन्य कार्यों का लाखो रुपये बकाया..
मिली जानकारी के अनुसार वहां आरईएस और पंचायत के माध्यम से विभिन्न निर्माण कार्य कराए गए थे,मनरेगा से 5 कूपों का निर्माण ग्राम पंचायत और समतलीकरण, फेंसिंग,सीपीटी गड्ढा खुदाई का काम कराया गया था।काम तो पूरे हो गए लेकिन आज तक मजदूरी भुगतान और विभिन्न कार्यों का लाखों रुपए भुगतान बचा हुआ है।यहां काम करने वाले विश्वनाथ सिंह,वीरेंद्र सिंह,प्रभु,अमरजीत,धनेश्वर,सुखदेव,अशोक,दीनदयाल,बलराम सहित अन्य मजदूरों ने बताया कि उन्होंने करीब दो महीने तक काम किया था लेकिन दो सप्ताह करीब का भुगतान बचा हुआ है।इसी तरह सीपीटी गड्ढा खुदाई, समतलीकरण सहित अन्य कार्यों में लगे ट्रेक्टर, जेसीबी मशीन सहित अन्य लोगों का भुगतान भी बचा हुआ।
ग्रामीणों की सोच बदली,समय की बर्बादी बता देखरेख किया बन्द..
योजना के लिए पंद्रह किसानों का चयन किया गया था जिसमें रामनाथ सिंह, शिव प्रसाद सिंह, सतनारायण, लक्ष्मी सिंह, देवनारायण, शिवमंगल, अमर साय, नंदेव सिंह, भगवान सिंह, जिंदालाल, तीलोचन, अकबर, पंचम, सोमारसाय,बुद्धू सिंह शामिल हैं।उन्होंने बताया कि अधिकारियों की उदासीनता के कारण उनकी सोच बदल गई और यहां मेहनत करना समय की बर्बादी लगने लगी है।स्वयं के खर्चे से वे थोड़ी बहुत सब्जियां उगा रहे हैं लेकिन कोई सहयोग नहीं मिलने से योजना के अनुसार काम नहीं कर पा रहे हैं।
अधूरे पड़े मुर्गी पालन शेड निर्माण, न मिली मुर्गियां और न मिली राशि..
यहां किसानों की आजीविका का साधन बढ़ाने सभी को मुर्गीपालन ने लिए भी प्रोत्साहित किया गया था और सभी के नाम से इसकीं स्वीकृति भी मिली थी।लेकिन वर्तमान में दस लोगों के ही मुर्गी घर बनाये जा रहे थे जो अधूरे पड़े हैं और इसका कारण राशि न मिलना है।किसानों ने बताया कि एक मुर्गी घर के लिए ढाई लाख का प्रावधान था लेकिन अब तो सत्तर सत्तर हजार रुपये ही मिले हैं।मुर्गी घर अधूरे होने के साथ मुर्गियां भी नहीं मिली जिस कारण मुर्गीपालन भी शुरू नहीं हो सका।
कोरोना काल में योजना का मिलता लाभ..
यदि आज यह योजना का क्रियान्वयन सही तरीके से किया गया होता तो आज कोरोना काल के संकट में है यहां के 15 किसानों के आत्मनिर्भरता से पूरे जिले वासियों को लाभ मिलता। 30 एकड़ की भूमि में किए गए विभिन्न प्रकार के सब्जी, फल इत्यादि प्लांटेशन का जिले को भरपूर लाभ मिलता। कोरोना काल में आज बाहर के कई राज्यों से मंहगे दामों में सब्जियां मंगाई जा रही है यही सब्जी हमारे जिले में हमर जंगल हमर आजीविका के तहत मिलता। जिससे 15 किसानों के साथ कई मजदूरों को रोजगार मिल जाता जिससे वह आत्मनिर्भर बने होते।