छत्तीसगढ़ में भूपेश के भरोसे पर, मोदी की गारंटी भारी पड़ गई !!..सरगुजा संभाग में भाजपा का क्लीन स्वीप, 14-0 का बना इतिहास
आलेख-
संतोष दास ‘सरल’
राजनीतिक विश्लेषक, अंबिकापुर।
03 दिसम्बर को चार राज्यों के विधानसभा चुनाव परिणाम आने के बाद पूरे देश की राजनीति में एकदम से परिवर्तन आ गया है। मध्यप्रदेश, राजस्थान तथा छत्तीसगढ़ में भारी बहुमत में आने के बाद जहाँ भाजपा जीत के जश्न में झूम रही है वहीं एकमात्र तेलंगाना राज्य में ऐतिहासिक जीत के बाद भी कॉंग्रेस खेमे में मायूसी है। तेलंगाना को छोड़ दें तो बाकी तीनों राज्यों के मीडिया व एजेंसियों के एक्जिट पोल फेल साबित हुए हैं। सबसे ज्यादा जिस राज्य के चुनाव परिणाम ने चौंकाया वो है 90 सीटों वाला स्टेट छत्तीसगढ़। चुनाव पूर्व किसी भी एक्जिट पोल ने यहां भाजपा की सरकार बनते नहीं दिखाया था फिर भी 54 सीटों के रिकॉर्ड जीत के साथ भाजपा बहुमत से 09 सीटें ज्यादा जीतकर सरकार बनाने जा रही है। आख़िर ऐसा क्या हुआ कि सटीक अनुमान लगाने में माहिर चुनावी विशेषज्ञ प्रेस मीडिया भी जनता की नब्ज़ या कहें अंडर करेंट को पकड़ नहीं पाई। याद करिए आचार संहिता लगने के दो महीने पहले की स्थिति जब 16 अगस्त को भाजपा ने अपने 22 उम्मीदवारों की पहली लिस्ट जारी की थी तब भी कोई सर्वे एजेंसी बीजेपी को 30 से ज्यादा सीटें देने को तैयार नहीं थी। लगभग तीन महीने बाद ही भाजपा ने अनुमान से 24-25 सीटें ज्यादा जीतकर न केवल इतिहास रचा बल्कि चुनावी पंडितों के सारे गणित भी फेल कर दिए। विशेष रूप से सरगुजा संभाग की बात करें तो 14 में पूरी 14 सीटें जीतने का अनुमान तो भारतीय जनता पार्टी के लिए भी किसी सपने के सच होने जैसा ही है। इतिहास बताता है कि छत्तीसगढ़ में सरकारें अब तक आदिवासी बहुल सरगुजा तथा बस्तर संभाग के एकतरफ़ा प्रदर्शन से ही बनी है, पिछली बार भी कॉंग्रेस के 14-0 वाले प्रदर्शन से न केवल प्रदेश में कॉंग्रेस की सरकार बनी बल्कि संभाग का नेतृत्व करने वाले कॉंग्रेस के बड़े नेता टी एस सिंह देव का कद भी बढ़ा। ये अलग बात है कि कॉंग्रेस आलाकमान ने आखिरी समय में उपमुख्यमंत्री बनाकर उन्हें संतुष्ट करने की असफल कोशिश की। सरगुजा अंचल में आए इस ऐतिहासिक परिणाम के कई मायने हैं। टिकट वितरण में एक ओर जहां भाजपा ने रामविचार नेताम, रेणुका सिंह, विष्णुदेव साय, भैयालाल राजवाडे, गोमती साय, श्याम बिहारी जायसवाल जैसे बड़े चेहरों को मैदान में उतारकर बड़ा दांव लगाया तो वहीं प्रबोध मिंज, रामकुमार टोप्पो, राजेश अग्रवाल, भुलन सिंह मरावी, उद्धेश्वरी पैकरा, लक्ष्मी राजवाडे, शकुंतला पोर्ते, रायमुनि भगत जैसे नए चेहरों को मौका देकर जनता को बदलाव का स्पष्ट संदेश देने की कोशिश की। कॉंग्रेस पार्टी की बात करें तो संभाग में मंत्री प्रेमसाय सिंह और विधायक वृहस्पति सिंह, चिंतामणी महाराज तथा विनय जायसवाल का टिकट काटकर उपमुख्यमंत्री टी एस सिंह देव ने अपने व कॉंग्रेस के लिए मुसीबत ही मोल लिया। टिकट कटने वालों में किसी ने खुले रूप से तो किसी ने अंदर ही अंदर कॉंग्रेस को नुकसान पहुंचाने की कोशिश की। सामरी विधायक चिंतामणी महाराज तो कॉंग्रेस से नाराज होकर बीजेपी में ही आ गये जिसका फायदा प्रत्यक्ष रूप से भाजपा को मिला। आदिवासी अंचल सरगुजा संभाग में भाजपा के क्लीन स्वीप का एक प्रमुख कारण प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का दतिमा की ऐतिहासिक सभा में दिया गया उनका वो भाषण भी था जिसमें वो छाती ठोंककर जनता से कहते हैं कि “ये मोदी की गारंटी है, यानि हर गारंटी पूरी होने की गारंटी”। सही कहें तो प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने चुनावी क्रिकेट के आखिरी ओवर में आकर छक्कों चौकों की ऐसी बरसात कर दी जिसका जवाब कॉंग्रेस के पास बिल्कुल नहीं था। उन्होंने जनता के मन में भाजपा के प्रति एक विश्वास का माहौल पैदा किया। भाजपा की जीत का दूसरा सबसे प्रमुख कारण था बड़ी संख्या में महिला वोटरों का घर से निकलकर वोट करना। इस बार बीजेपी की जीत में इन्हीं महिला वोटरों की भूमिका अत्यंत महत्त्वपूर्ण रही है। चुनाव में बीजेपी की महत्वपूर्ण घोषणा “महतारी वंदन योजना” का व्यापक असर महिलाओं में देखने को मिला। इस चुनाव में भाजपा की रणनीति कॉंग्रेस से कहीं बेहतर नज़र आई। भाजपा ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में सरगुजा सहित पूरे छत्तीसगढ़ में आक्रामक प्रचार किया। चुनाव के दौरान हुए कैंपेन पर नज़र डालें तो बीजेपी की ओर से प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी, गृहमंत्री अमित शाह, रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह तथा कॉंग्रेस की ओर से राहुल गांधी तथा प्रियंका गांधी ने अपने अपने प्रत्याशियों के समर्थन में ताबड़तोड़ रैलियां कीं परंतु इन रैलियों में बड़ी संख्या में उमड़ी भीड़ के मामले में तुलनात्मक रूप से प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी बाजी मारते दिखे। इस चुनाव में आदिवासी वोटरों ने भी भाजपा को जिताने में अपनी प्रमुख भूमिका निभाई है। बस्तर और सरगुजा संभाग में पिछले विधानसभा चुनाव में जो आदिवासी समाज बीजेपी से दूर हो गया था वह पुनः भाजपा की ओर लौटता दिखाई दे रहा है। उल्लेखनीय है कि 2003 और 2008 में छत्तीसगढ़ में भाजपा की सरकार बनाने में आदिवासी वर्ग के वोटरों की बहुत बड़ी भूमिका रही है। यदि पिछले डेढ़ दो सालों के राजनीतिक घटनाक्रमों पर नजर डालें तो केंद्र की नरेंद्र मोदी की सरकार ने आदिवासी वर्ग के हित में कई बड़े निर्णय लिए हैं जिसमें छत्तीसगढ़ की 12 जातियों को अनुसूचित जनजाति में शामिल करना, आदिवासी गौरव भगवान बिरसा मुंडा की जयंती को विश्व आदिवासी दिवस की मान्यता देकर छुट्टी घोषित करना, अति पिछड़े आदिवासी वर्ग की महिला श्रीमती द्रौपदी मुर्मू को राष्ट्रपति पद पर सुशोभित कर आदिवासी समाज को गौरव प्रदान करना तथा आदिवासी वर्ग को सीधे लाभ देने वाली कई केंद्रीय योजनाओं को लागू करना इत्यादि। मोदी सरकार के इन निर्णयों का प्रभाव आदिवासी समाज में बहुत गहरे तक पड़ा है इस बात से इन्कार नहीं किया जा सकता। दूसरी ओर प्रदेश की भूपेश सरकार ने अपने पांच वर्षों के कार्यकाल में छत्तीसगढ़ियावाद तो खूब चलाया परंतु इस सबमें जनजाति कल्याण कहीं पीछे छूट गया। आदिवासी समाज के लिए कॉंग्रेस सरकार में नृत्य महोत्सव व सांस्कृतिक आयोजनों को छोड़कर ऐसा कोई ठोस काम नहीं हुआ जिससे पूरे आदिवासी समुदाय के जीवन में परिवर्तन आया हो या उन्हें प्रत्यक्ष रूप से लाभ पहुंचा हो। 2018 में 75 सीटें जीतकर इतिहास रचने वाली कॉंग्रेस पार्टी पांच साल में ही 35 सीटों पर आ जाएगी ये यकीन करना मुश्किल है। लोकप्रियता के शिखर से सीधे ज़मीन पर इतनी जल्दी आ जाना मुख्यमंत्री भूपेश बघेल व कॉंग्रेस पार्टी के नेतृत्व पर कई सवाल खड़े करता है। छत्तीसगढ़ में भूपेश के भरोसे पर मोदी की गारंटी भारी पड़ गई ये कहा जा सकता है।
बहरहाल, 2023 की विधानसभा चुनाव का असर 2024 के लोकसभा चुनाव में पड़ना तय माना जा रहा है। लोकसभा चुनाव में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की अगुवाई में भाजपा 400 सीटों का रिकॉर्ड आंकड़ा पार कर ले तो कोई आश्चर्य नहीं।